भारत में विवाह समारोह केवल दो व्यक्तियों के मिलन तक सीमित नहीं होते, बल्कि यह दो परिवारों और संस्कृतियों के मिलन का भी प्रतीक होते हैं। ऐसे ही एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान का नाम है ममेरे रस्म, जो गुजराती समाज में विशेष रूप से माने जाने वाला एक प्री-वेडिंग अनुष्ठान है। हाल ही में, अंबानी परिवार ने इस रस्म को अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट के आगामी विवाह के पूर्व मनाया, जो इस प्राचीन परंपरा की सुंदरता और उसके महत्व को रेखांकित करता है।
ममेरे रस्म का सबसे अनूठा और प्यारा पहलू यह है कि इसमें दुल्हन की मां के भाई यानी मामा का विशेष महत्व होता है। मामा दुल्हन को उपहार स्वरूप साड़ियां, गहने, हाथी दांत या सफेद चूड़ियां, मिठाइयां और सूखे मेवे भेंट करते हैं। यह केवल उपहार देने का मामला नहीं होता, बल्कि इसमें शामिल होते हैं मामा के दिल से आने वाले प्रेम, स्नेह, संवेदनाएँ और दुल्हन के सुखद दांपत्य जीवन के लिए शुभकामनाएँ। यह रस्म पीढ़ियों के बीच संबंधों को भी मजबूत करती है, पुराने सूत में नई गांठ जोड़ती है और प्रेम और विश्वसनीयता की निरंतरता को दर्शाती है।
ममेरे रस्म का महत्व केवल भव्यता या उपहारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस ममता और भावनात्मक जोड़ की भी प्रतीक है जो दुल्हन के मामा के मन में होता है। इस रस्म के दौरान मामा अपनी भांजी को दुल्हन के रूप में देखता है, और अपने उपहारों के माध्यम से उसे यह संदेश देना चाहता है कि विवाह के बाद भी वह उसके लिए हमेशा महत्वपूर्ण रहेगा।
हाल ही में, अंबानी परिवार द्वारा मुंबई स्थित एन्टीलिया में ममेरे रस्म का आयोजन किया गया। अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट के विवाह समारोह की शुरुआत इसी रस्म से हुई। इस अवसर पर राधिका ने एक सुंदर नारंगी और गुलाबी लहंगा पहना। अंबानी परिवार ने इस रस्म के दौरान एक बड़े पैमाने पर सामूहिक विवाह समारोह का भी आयोजन किया, जिसमें समाज के निम्न आय वर्ग के कई जोड़ों का विवाह संपन्न कराया गया। यह कार्य एक बड़े दिल और समाज की सेवा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
इस प्रकार की रस्में न केवल विवाह समारोह को विशेष बनाती हैं बल्कि संस्कृति और परंपराओं को भी जीवित रखती हैं। ममेरे रस्म का महत्व विभिन्न कोशिकाओं में बंटा हुआ है: यह परंपरा की निरंतरता का प्रतीक है, पारिवारिक संबंधों को मजबूत करती है, और सामाजिक सेवा का माध्यम भी बनती है। अंबानी परिवार ने इसी भावना के साथ इस रस्म को बड़े पैमाने पर उत्साह और समर्थन के साथ मनाया।
जब भी हम ममेरे रस्म की बात करते हैं, तो यह हमारे लिए गर्व की बात होती है कि हमारी संस्कृति इतनी समृद्ध है और हमारे अनुष्ठान इतने भावनात्मक और गहरे अर्थों से परिपूर्ण हैं। यह रस्म हमें सिखाती है कि भाषाओं के बीच प्यार और समर्थन का कोई सटीक माप नहीं होता और यह असीम और अटल सूत्रों में बंधा होता है जो पीढ़ियों को जोड़ता है।
यह तथ्य है कि अंबानी परिवार ने इस रस्म को इतने व्यापक और सामाजिक ढंग से मनाया, यह दर्शाता है कि वे न केवल अपनी परंपराओं का सम्मान करते हैं बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए आदर्श उदाहरण भी स्थापित करते हैं। इस आयोजन ने न केवल उनके परिवार को खुशियाँ दीं बल्कि समाज के उन वर्गों में भी एक नयी उम्मीद की किरण जगाई जो शायद ऐसे समारोहों का हिस्सा बनने का सपना ही देख पाते हैं।
कुल मिलाकर, ममेरे रस्म का आयोजन न केवल एक पारिवारिक अनुष्ठान था बल्कि यह समाज के लिए एक संदेश भी था कि परंपराओं का सम्मान और उनकी निरंतरता से समाज में नई ऊर्जा का संचार होता है। अंबानी परिवार ने इस आयोजन के माध्यम से यह सिखाया कि शादी केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि यह परिवारों और संस्कृतियों के भी एक साथ आने का उत्सव है।
ये ममेरे रस्म तो बस दिल को छू जाती है। मामा का वो प्यार, वो उपहार, वो आँखों में छिपी शुभकामनाएँ... कोई जेम्स बॉन्ड फिल्म भी इतना भावुक नहीं बना पाता। अंबानी वालों ने इसे बड़े पैमाने पर मनाया, तो ये सिर्फ शादी नहीं, एक सामाजिक अभियान बन गया।
मैंने अपनी बहन की शादी में भी देखा था, मामा ने एक हाथी दांत की चूड़ी दी थी - उसे अब तक मैं देखकर रो जाता हूँ।
अब ये सब बकवास अंबानी के नाम पर चल रही है? भारत की संस्कृति को बेच रहे हैं? ये रस्में तो गाँवों में होती थीं, अब एन्टीलिया में ड्रोन से फिल्माई जा रही हैं। लोगों को शादी का असली मतलब भूल गए।
मामा का प्यार? हाँ, लेकिन अब वो प्यार 50 करोड़ की लहंगे के बदले में दिया जा रहा है।
ममेरे रस्म का सांस्कृतिक वास्तविकता के साथ व्यापारिक संरचना का संघर्ष एक नवीन नाटकीय विरोधाभास प्रस्तुत करता है - जहाँ पारंपरिक भावनाओं को विशाल निवेशकीय इन्फ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से पुनर्परिभाषित किया जा रहा है।
इसका अर्थ है कि संस्कृति अब एक स्ट्रेटेजिक ब्रांडिंग टूल है, न कि केवल एक भावनात्मक अनुष्ठान।
अंबानी परिवार ने इसे एक फेसबुक रील की तरह नहीं, बल्कि एक यूनेस्को विरासत की तरह प्रस्तुत किया।
मैं इसे एक नव-सांस्कृतिक संक्रमण कहूँगा।
जब एक बैंकर अपनी भांजी को एक सोने की चूड़ी देता है, तो वह एक आर्थिक विनिमय नहीं, बल्कि एक भावनात्मक ऋण लेता है।
और जब वह इसे 1000 गरीब जोड़ों के साथ साझा करता है, तो वह एक नए धर्म की स्थापना कर रहा है - धर्म जिसका नाम है 'लक्ष्मी का वितरण'।
अच्छा लगा। इस तरह की रस्में बहुत कम हो रही हैं।
अंबानी जैसे लोग इसे बड़े पैमाने पर दिखाकर ये बता रहे हैं कि परंपरा और दान एक साथ चल सकते हैं।
हमें बस इतना करना है - इन बातों को अपने घर में भी दोहराना।
ममेरे रस्म के बारे में सुनकर लगा जैसे कोई मेरे बचपन की याद दिला रहा हो।
मेरे मामा ने मुझे एक छोटी सी चूड़ी दी थी, जो अब मेरी माँ के पास है।
उन्होंने कहा था - 'ये तेरी नई शुरुआत का प्रतीक है, लेकिन तू हमेशा हमारी बेटी रहेगी।'
अब जब मैं अपनी बेटी की शादी की बात करता हूँ, तो उस चूड़ी की बात भी शुरू कर देता हूँ।
ये रस्म बस उपहार नहीं, एक वारिसाना है।
ममेरे रस्म बहुत अच्छी है बस अब इसे बाजार में बेचना शुरू नहीं कर देना चाहिए
अंबानी ने तो इसे एक ब्रांड बना दिया
लेकिन अगर ये रस्म असली है तो इसका दिल होना चाहिए न कि बजट
मैंने एक गाँव में देखा था जहाँ मामा ने एक चारपाई दी थी और कहा था ये तेरी नई दुनिया का बिस्तर है
वो बेहतर था
अंबानी ने इस रस्म को बड़ा बनाया? बस इतना ही? तुम्हारे घर में क्या नहीं होता? जब तक तुम अपने गाँव के बच्चों को नहीं देते तो ये सब नाटक है! जब तक तुम अपने भाई के बेटे को नहीं देते तो ये रस्म तुम्हारे लिए नहीं, तुम्हारे ट्विटर फॉलोअर्स के लिए है! तुम भारत की संस्कृति का नाम लेकर लाखों कमा रहे हो! ये शादी नहीं, एक विज्ञापन है! ये दान नहीं, एक फेक नेक काम है! जब तक तुम अपने घर में गरीबों को खाना नहीं देते, तब तक ये सब बकवास है!
मैंने अपने गाँव में एक बार देखा था - मामा ने एक बूढ़ी दादी को लेकर आया था, जो दुल्हन की दादी थी। उन्होंने दोनों के हाथ में एक ही चूड़ी पहनाई।
किसी ने नहीं पूछा कि ये कौन है, किसकी बेटी है।
बस दो दिलों का जुड़ाव।
अंबानी ने जो किया, वो उसी भावना का एक बड़ा अनुवाद है।
लेकिन याद रखो - ये रस्म नहीं, भावना है।
और भावना को कैमरे से नहीं, दिल से देखना चाहिए।
ममेरे रस्म एक ऐसा सांस्कृतिक अंतर्ज्ञान है जो आधुनिकता के नाम पर धुल रही है।
यहाँ पर एक भावनात्मक विनिमय होता है - न कि एक आर्थिक लेन-देन।
मामा दुल्हन को उपहार देता है, लेकिन वह उसकी नई पहचान को नहीं, बल्कि उसके बचपन को याद दिलाता है।
यह एक ऐसा रिश्ता है जो लिखे गए नियमों से बाहर है - यह अनुभव का रिश्ता है।
जब एक व्यक्ति अपनी भांजी को दुल्हन के रूप में देखता है, तो वह उसे एक नए परिवार में छोड़ रहा होता है - लेकिन उसे यह भी बता रहा होता है कि तुम्हारा असली घर अभी भी वही है।
यही तो भारतीय परिवार की सबसे बड़ी ताकत है - बाँटने की क्षमता, न कि जुड़ने की।
अंबानी ने इसे बड़ा बनाया, लेकिन अगर इसका भाव खो गया तो यह बस एक नाटक बन जाएगा।
हमें याद रखना होगा - दुल्हन के लिए एक चूड़ी भी अगर दिल से दी जाए, तो वह अनंत शक्ति ले आती है।
अंबानी ने ये रस्म क्यों मनाई तुम्हें पता है? क्योंकि उनके पास बाकी सब कुछ है बस एक अच्छा नाम नहीं
और अब वो इसे बेच रहे हैं
मैंने देखा था उनकी शादी की तस्वीरें
किसी के घर के दरवाजे पर एक चूड़ी लटक रही थी
मैंने सोचा ये असली रस्म है या फिर एक ब्रांडेड गिफ्ट बॉक्स
क्या तुम्हें लगता है कि एक गरीब मामा भी इतना बड़ा लहंगा दे सकता है
मुझे नहीं लगता
हमारी संस्कृति को अंबानी ने बचाया? तुम बेवकूफ हो क्या? हमारी संस्कृति को बचाने के लिए हमें अपने घरों में बैठकर नहीं, बल्कि अपने दिलों में बसाना होगा
अंबानी के पास देश का सारा सोना है लेकिन उनके दिल में क्या है? एक फोटो शूट का बजट?
मैं जब भी ये रस्म सुनता हूँ तो मुझे लगता है कि हमारी संस्कृति को अब सोशल मीडिया पर बेचने के लिए तैयार किया जा रहा है
ये नहीं होना चाहिए
हमारी संस्कृति एक ट्रेंड नहीं है
ये हमारी आत्मा है
ये रस्म बहुत खूबसूरत है।
ममेरे रस्म में एक अद्वितीय शांति है - जिसमें बिना शोर के प्यार बहता है।
यह एक ऐसा पल है जहाँ दुल्हन का भविष्य और उसका अतीत एक साथ बैठते हैं।
मामा का उपहार नहीं, उसकी आँखों की चमक ही वास्तविक देन है।
यह रस्म किसी की शान नहीं, बल्कि किसी के दिल की गहराई का प्रतिबिंब है।
जब अंबानी ने इसे गरीबों के साथ साझा किया, तो वे ने सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि एक नए सामाजिक समझौते की शुरुआत की।
यह वह जगह है जहाँ धन और दया एक साथ बैठ जाते हैं।
हमें इस रस्म को अपने घरों में बसाना चाहिए - न कि सिर्फ एक विवाह के दिन तक।
मैं एक गुजराती लड़की हूँ और ममेरे रस्म मेरे लिए बहुत कुछ है।
मेरे मामा ने मुझे एक चूड़ी दी थी जिस पर एक छोटा सा हाथी बना था।
उन्होंने कहा - 'ये हाथी तुम्हारे जीवन में भारी बोझ नहीं, बल्कि तुम्हारा साथी बनेगा।'
मैंने उसे अब तक नहीं उतारा।
अंबानी ने जो किया, वो मेरे लिए गर्व की बात है।
क्योंकि अब दुनिया भर में लोग जानेंगे कि हमारी संस्कृति में दिल होता है, न कि सिर्फ सोना।
ममेरे रस्म का महत्व उसके उपहारों में नहीं, उसके चुप्पी में है।
जब मामा कोई बात नहीं करता, बस दुल्हन की ओर देखता है - तो उसकी आँखों में छिपी बातें सब कुछ कह देती हैं।
यह रस्म एक अनकही कहानी है।
अंबानी ने इसे बड़ा बनाया, लेकिन असली शक्ति तो उन गाँवों में है जहाँ ये रस्म बिना कैमरे के होती है।
हमें इसे बचाना होगा - न कि बाजार में बेचना।
आप सब ये बातें क्यों कर रहे हैं? अंबानी ने तो बस एक रस्म मनाई है।
आप लोगों को इतना गुस्सा क्यों आ रहा है?
मैंने अपनी बहन की शादी में भी देखा था - मामा ने एक नकली चूड़ी दी थी।
लेकिन वो रो गया।
अगर आप उसके आँसुओं को नहीं देख पाए, तो आपको इस रस्म का मतलब समझ नहीं आया।
ममेरे रस्म एक ऐसी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है जो आधुनिक भारत के अस्तित्व को दर्शाती है - जहाँ पारंपरिक भावनाएँ और आर्थिक शक्ति एक साथ समाहित हो रही हैं।
अंबानी परिवार ने इसे एक नए ढंग से प्रस्तुत किया है, जिसमें व्यक्तिगत भावनाओं के साथ-साथ सामाजिक उत्तरदायित्व का भी एक नया आयाम जुड़ गया है।
यह रस्म अब एक निजी अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सार्वजनिक नैतिक घोषणा बन गई है।
इसका मतलब है कि धन का उपयोग अब केवल स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक विरासत को बनाए रखने के लिए भी हो सकता है।
यह एक नया धर्म है - जहाँ दान एक आध्यात्मिक कृत्य है।
हमें इसे नकारने की बजाय समझना चाहिए - क्योंकि जब एक परिवार अपने विशाल संसाधनों को एक छोटी सी चूड़ी के माध्यम से दूसरों के साथ साझा करता है, तो वह एक नए युग की शुरुआत कर रहा होता है।
यह रस्म न केवल दुल्हन को नहीं, बल्कि समाज को एक नई पहचान देती है।
मैंने इस रस्म के बारे में सुना और रो पड़ी।
मेरे मामा ने मुझे एक चूड़ी दी थी, और फिर उनकी मृत्यु हो गई।
मैंने उस चूड़ी को अब तक नहीं उतारा।
आज जब मैंने अंबानी की शादी देखी, तो लगा जैसे मेरा मामा फिर से मुझे देख रहा है।
ये रस्म मेरे दिल की आवाज है।
शायद ये रस्म बड़े पैमाने पर हुई, लेकिन अगर इसका दिल नहीं रहा, तो ये सिर्फ एक शो है।
मैंने एक गाँव में देखा - मामा ने एक खाली बाल्टी दी थी और कहा - 'इसमें तुम्हारा नया घर भर जाएगा।'
उस बाल्टी में उन्होंने खाना, चावल, और एक छोटी सी चूड़ी डाली थी।
अब जब मैं इस बाल्टी को देखता हूँ, तो मुझे लगता है - ये तो असली ममेरे रस्म है।