उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में हाल ही में हुई हिंसा ने पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना दिया है। इस हिंसा में मुख्य आरोपी सरफ़राज़ खान और उसका सहयोगी मोहम्मद तालिम उर्फ सब्लू को पुलिस ने एक ऑपरेशन में घायल अवस्था में पकड़ लिया है। इस घटना से इलाके में व्यापक सुरक्षा इंतजामात की आवश्यकता हो गई है, खासकर बहराइच मेडिकल कॉलेज में जहां घायल आरोपियों का इलाज चल रहा है।
पुलिस मुठभेड़ में क्या हुआ?
बहराइच के पुलिस अधिकारियों के अनुसार, यह मुठभेड़ तब हुई जब पुलिस को सूचना मिली कि सरफ़राज़ और उसका साथी नेपाल भागने की फ़िराक में हैं। हँदा बशेहरी नहर के निकट जब इन्हें रोकने का प्रयास किया गया, तो इनके द्वारा गोलीबारी की गई। पुलिस के जवाबी कार्रवाई में दोनों को पैरों में चोट आई। फौरन ही उन्हें बहराइच मेडिकल कॉलेज ले जाया गया, जहां विशेष सुरक्षा व्यवस्था के बीच उनका इलाज किया जा रहा है।
आरोपियों की गिरफ्तारी और सुरक्षा इंतजाम
इस मुठभेड़ के बाद, पुलिस ने हिंसा से संबंधित पांच नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी की पुष्टि की। इनमें मोहम्मद फ़हीम, मोहम्मद तालिम उर्फ सब्लू, मोहम्मद सरफ़राज़, अब्दुल हमीद और मोहम्मद अफजाल शामिल हैं। एक महत्वपूर्ण सबूत के रूप में हत्या में इस्तेमाल किया गया हथियार भी बरामद किया गया है।
मुख्यमंत्री का निर्देश और राजनीतिक प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना के संबंध में उच्चस्तरीय बैठक कर पुलिस को निर्दोषों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही उन्होंने घटना की जांच में किसी प्रकार की लापरवाही बरतने पर सख्त कार्रवाई करने की हिदायत दी है। दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इस मुठभेड़ पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि यह मुठभेड़ असली नहीं, बल्कि बनाई गई थी।
हिंसा की जांच में जुटी पुलिस का कहना है कि उन्हें इस घटना से संबंधित कई अहम वीडियोज मिले हैं। जिसमें एक वीडियो में गोपाल मिश्रा को गोली लगते हुए दिखाया गया है। इस वीडियो में साफ दिख रहा है कि गोपाल छत से झंडा हटाने की स्थिति में था जब उसे गोली मारी गई।
आरोपियों के परिवार का आरोप और सवाल
इस बीच, गिरफ्तार आरोपी अब्दुल हमीद की बेटी रुख़सार ने आरोप लगाया है कि उनके पिता, दो भाई और एक अन्य युवक को यूपी एसटीएफ ने हिरासत में लिया है। उनका कहना है कि इनकी गिरफ्तारी की कोई जानकारी परिवार को नहीं दी गई है।
बहरहाल, पुलिस के इस त्वरित और बहादुरी पूर्ण कार्रवाई से इलाके में कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कई सकारात्मक संकेत पहुंचे हैं। परंतु, यह देखना होगा कि आगे की जाँच में और क्या तथ्य सामने आते हैं। केस की समग्रता और निष्पक्षता से जाँच होने की अपेक्षा है ताकि निर्दोषों को न्याय मिल सके और असल आरोपी सजा पा सकें।
ये सब बकवास है पुलिस ने जो किया वो अपराधी को मारने का झूठा ढोंग है। वीडियो देखो तो साफ दिख रहा है कि वो छत से झंडा हटा रहा था और उसे गोली मार दी गई।
संविधान की धारा 21 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को न्याय का अधिकार है, चाहे वह आरोपी हो या निर्दोष। यहाँ न्याय की प्रक्रिया का सम्मान करना आवश्यक है, न कि भावनाओं के आधार पर निर्णय लेना।
ये आरोपी आतंकवादी हैं, न कि झंडा हटाने वाले नागरिक। पुलिस की कार्रवाई बिल्कुल सही थी। इन लोगों को फांसी चढ़ाना चाहिए, न कि अस्पताल में इलाज करना। देश की सुरक्षा के लिए इनका अंत होना चाहिए।
इस मामले में दोनों ओर की कहानी सुननी चाहिए। पुलिस का काम आसान नहीं है, लेकिन निर्दोषों की भी सुरक्षा होनी चाहिए। जांच निष्पक्ष हो, यही सबसे जरूरी है।
ये बहराइच का मामला तो बिल्कुल गर्म है! लोगों के दिलों में डर और क्रोध दोनों हैं। जिस वीडियो में गोपाल मिश्रा को गोली मारते देखा गया, वो तो दिल तोड़ देने वाला है। लेकिन अगर आरोपी आतंकवादी हैं, तो उन्हें रोकना भी जरूरी है। ये दोनों बातें एक साथ संभव हैं।
अखिलेश यादव जैसे लोग तो बस राजनीति के लिए झूठ बोलते हैं। ये मुठभेड़ बनाई गई? तुम्हारी आँखें बंद हैं क्या? ये आरोपी ने दो लोगों को मार डाला, अब बचने की कोशिश कर रहे हैं। इनका फांसी पर लटकना ही सही है!
यहाँ एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण आवश्यक है। यदि राज्य के अधिकारियों ने अपनी अधिकारिता के अतिक्रमण के साथ जनता के अधिकारों को उल्लंघित किया है, तो यह एक संवैधानिक आपातकाल है। यदि वीडियो सत्य हैं, तो इनका विश्लेषण करने के लिए एक स्वतंत्र न्यायिक आयोग की आवश्यकता है।
इस तरह के मामलों में शांति बनाए रखना जरूरी है। न तो पुलिस को बर्बर बताना चाहिए, न ही आरोपियों को बलिदानी। बस जांच होनी चाहिए, और जो सच होगा, उसी को स्वीकार करना चाहिए।
मुझे लगता है कि ये वीडियो बहुत महत्वपूर्ण हैं। अगर गोपाल मिश्रा ने झंडा हटाने की कोशिश की थी, तो ये बहुत बड़ा मुद्दा है। पुलिस को अपनी रिपोर्ट और वीडियो को जांचने के लिए एक तटस्थ एजेंसी को देना चाहिए।
अब्दुल हमीद की बेटी का कहना है कि परिवार को कुछ नहीं बताया गया ये बात भी सच हो सकती है अगर ऐसा हुआ तो ये गलत है पुलिस को तुरंत जानकारी देनी चाहिए
ये आरोपी आतंकवादी हैं! ये नागरिक नहीं! ये बस अपनी बचाव की कोशिश कर रहे हैं! ये वीडियो भी फेक हो सकता है! ये लोग बस देश के खिलाफ लड़ रहे हैं! ये आतंकवाद का नाम है! इनको फांसी चढ़ाना चाहिए! इनकी बच्चियों को भी जेल में डाल देना चाहिए!
इस तरह के मामलों में जनता को भ्रमित होने का मौका नहीं देना चाहिए। जांच को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना होगा। अगर पुलिस ने गलत किया, तो उसे सजा मिलनी चाहिए। अगर आरोपी दोषी हैं, तो उन्हें न्याय मिलना चाहिए। न्याय का रास्ता ही सबसे बड़ा समाधान है।
यहाँ एक महत्वपूर्ण बात है: न्याय की अवधारणा एक सामाजिक समझौता है। यदि जनता को लगता है कि न्याय बाहर से लाया गया है, तो वह अपने अधिकारों के प्रति असंवेदनशील हो जाती है। इसलिए न्याय की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी आवश्यक है।
अखिलेश यादव का कहना है कि ये मुठभेड़ बनाई गई तो अब बताओ जो वीडियो आया है वो कैसे बनाया गया क्या वो वीडियो भी बनाया गया जिसमें गोपाल मिश्रा को गोली लग रही है ये सब बकवास है ये लोग बस राजनीति के लिए झूठ बोलते हैं
इस देश में अब आतंकवादियों को गिरफ्तार करने के बाद उनके लिए अस्पताल की व्यवस्था क्यों की जा रही है? इन्हें गोली मार देना चाहिए था, इलाज नहीं। ये देश के दुश्मन हैं। ये आतंकवाद के आधार पर नहीं, बल्कि इस देश के खिलाफ लड़ रहे हैं।
सच जानना है तो जांच होनी चाहिए। न्याय ही शांति है।
एक अच्छा न्याय प्रणाली का अर्थ है कि वह निर्दोष को बचाए, और दोषी को दंड दे। यहाँ दोनों चीजें संभव हैं। लेकिन उसके लिए निष्पक्षता चाहिए, न कि भावनाएँ।
मैं ये नहीं कह रही कि पुलिस गलत है या आरोपी बर्बर हैं। लेकिन ये वीडियो जो आया है, उसमें एक आम आदमी को गोली मारते देखा गया है। ये कोई आतंकवादी नहीं है, ये एक इंसान है। हमें उसके लिए भी आवाज उठानी चाहिए।
अब तो ये साफ हो गया कि ये मुठभेड़ बनाई गई थी। वीडियो के बाद कोई नहीं बच रहा।