सड़क हादसे में शहीद, गांव में मातम पसरा
उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के मधुपुर क्षेत्र का नाम गुरुवार को पूरे देश में चर्चित हो गया, लेकिन वजह ऐसी थी जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। यहां के रहने वाले CRPF जवान की जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले में सड़क हादसे में मौत हो गई। उनका पार्थिव शरीर जैसे ही पैतृक गांव पहुंचा, पूरे इलाके में गमगीन माहौल छा गया। हर कोई इस बहादुर बेटे के अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़ा।
हादसा उधमपुर के बसंतगढ़ इलाके में कंडवा-बसंतगढ़ रोड पर हुआ था। जानकारी के मुताबिक, पहाड़ी क्षेत्र में तैनात जवानों से भरी एक वाहन अचानक बेकाबू होकर गहरी खाई में जा गिरी। इस दर्दनाक हादसे में तीन जवान मौके पर ही शहीद हो गए जबकि दस घायल हो गए। पांच जवानों की हालत नाजुक बताई गई है। हादसे के तुरंत बाद राहत और बचाव अभियान शुरू किया गया। सभी घायलों को तुरंत इलाज के लिए अस्पताल भेजा गया।
सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार, देशभक्ति की गूंज
शहीद जवान के पार्थिव शरीर के गांव पहुंचते ही ग्रामवासियों के साथ-साथ जिले के उच्च अधिकारियों ने भी श्रद्धांजलि दी। अंतिम संस्कार के दौरान पूरा गांव भारत माता के जयकारों से गूंज उठा। CRPF दस्ते ने जवान के ताबूत को तिरंगे में लपेटा, पारंपरिक सलामी दी और पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई। जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने भी उन्हें कंधा दिया।
शहीद के परिजनों, खासकर बूढ़े माता-पिता की हालत देखकर हर आंख नम थी। गांव के युवाओं ने कहा कि उनका बलिदान इलाके के लिए गर्व की बात है। वहीं, स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इसे देश के असली हीरो की जर्बदस्त कुर्बानी बताया।
सरकार की तरफ से MoS (प्रधानमंत्री कार्यालय) डॉ. जितेंद्र सिंह ने तुरंत घटना पर दुख जताया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि उन्होंने खुद उधमपुर के उपायुक्त से बात की है और हालात की लगातार निगरानी हो रही है।
- सड़क किनारे सुरक्षा के अभाव
- पर्वतीय इलाकों में ड्यूटी की चुनौतियां
- परिजनों की सुध लेने प्रशासन का सक्रिय रुख
इस हादसे ने फिर साबित कर दिया कि सीमाओं या मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि दुर्गम इलाकों में ड्यूटी निभाते जवानों को हर दिन जान जोखिम में डालना पड़ता है। ऐसे में गांव से लेकर जिले तक, पूरा देश इस बहादुर सेनानी के बलिदान को नमन कर रहा है।
इस तरह के हादसे बार-बार हो रहे हैं और कोई सुधार नहीं हो रहा। पहाड़ी सड़कों पर बसों की जगह ट्रक चलाना खतरनाक है। जवानों को बचाने के लिए अलग से सुरक्षा योजना बनानी होगी। कोई भी नियम नहीं है जो इन रास्तों के लिए खास हो।
ये बेवकूफ लोग अभी तक इतना ध्यान नहीं दे रहे?! जवान शहीद हुए तो बस तिरंगा लहराया और चले गए! अगर ये लोग अपनी जिम्मेदारी निभाते तो ऐसा हादसा कभी नहीं होता! देश की रक्षा करने वाले को इतना बेइंतजारी से मार डाला जा रहा है! ये सरकार क्या कर रही है?! इनकी जिंदगी बर्बाद कर रही है!
इस जवान के परिवार की हालत देखकर दिल टूट गया। उनके बुजुर्ग माता-पिता अब क्या करेंगे? एक बेटा देश के लिए चला गया, और अब वो बूढ़े अकेले हैं। हम सब इस बलिदान को भूल नहीं सकते। ये बलिदान हमारे लिए एक सबक है। अगर हम इसे नहीं समझेंगे तो आगे क्या होगा?
इस हादसे के पीछे केवल रास्तों की खराबी नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक अनदेखी है। हम जवानों को बहादुर बताते हैं, लेकिन उनकी जिंदगी के लिए जिम्मेदारी नहीं लेते। जब तक हम ये नहीं समझेंगे कि सुरक्षा का मतलब सिर्फ बंदूक नहीं, बल्कि तैयारी और देखभाल है, तब तक ऐसे हादसे दोहराएंगे। हम अपने बलिदान को सम्मान देते हैं, लेकिन उनकी जिंदगी को नहीं।
ये सब बहुत नाटकीय है लेकिन क्या कोई जानता है कि इन जवानों को ट्रक में बैठाने का कारण क्या है? ये सब बस एक बड़ा अफवाह है। कोई नहीं जानता कि वो वाहन किसका था और क्यों बेकाबू हुआ। ये सब सिर्फ मीडिया का नाटक है। किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया तो फिर ये दुख क्यों दिखाया जा रहा है?
हमारे देश में ऐसे लोग जो अपनी जान देकर भी बचाने की कोशिश नहीं करते वो देश के लिए नहीं बल्कि बेवकूफ हैं! जवान शहीद हुए तो अब उनके लिए तिरंगा लहराना है या फिर उनकी जिंदगी के लिए जिम्मेदारी लेना है? हमें अपने आप को बदलना होगा। अगर ये बलिदान बेकार हुआ तो अगली बार कोई और नहीं जाएगा।
शहीदों को सलाम।
हम सब इस बलिदान को याद रखेंगे। लेकिन क्या हम इसे सिर्फ एक घटना के रूप में देखते रहेंगे? या हम इसे एक नए सवाल के रूप में लेंगे - क्या हम अपने जवानों के लिए इतना कुछ करते हैं जितना उन्होंने हमारे लिए किया? ये सवाल हमें अपने आप से पूछना चाहिए। बिना जवाब के, ये सब बस शब्द हैं।