चंदिपुरा वायरस का परिचय
चंदिपुरा वायरस ने गुजरात में एक बार फिर से दस्तक दी है और यह संक्रमण बेहद घातक साबित हो रहा है। हाल ही में इस वायरस के प्रकोप के कारण छह मौतें हो चुकी हैं और कुल 12 संदिग्ध मामलों की रिपोर्ट आई है। इस विशिष्ट वायरस का प्रकोप सबसे पहले 2003-04 में महाराष्ट्र, गुजरात और आंध्र प्रदेश में हुआ था। चंदिपुरा वायरस एक प्रकार का RNA वायरस है, जो आमतौर पर मच्छरों और बालू मक्खियों के खून के द्वारा फैलता है।
चंदिपुरा वायरस के लक्षण
चंदिपुरा वायरस का प्रभाव अचानक महसूस होने वाले उच्च बुखार से शुरू होता है। इसके साथ ही यह मरीज के शरीर में गंभीर दौरे, दस्त और उल्टी का कारण बनता है। यह स्थिति मानसिक संवेदनशीलता में परिवर्तित हो सकती है, जिसे आम भाषा में ब्रेनफीवर कहा जाता है। मस्तिष्कशोथ की यह स्थिति बेहद तेजी से बढ़ सकती है और मरीज को मात्र 24-48 घंटों के भीतर ही जानलेवा साबित हो सकती है।
संक्रमण के कारण
यह वायरस बालू मक्खियों और मच्छरों के संक्रमित काटने से फैलता है। ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में इन मक्खियों और मच्छरों की अधिकता देखी जाती है, जिसके कारण यहां पर चंदिपुरा वायरस का संक्रमण ज्यादा होता है। अच्छी स्वच्छता और रोकथाम के उपायों की कमी से बीमारी के फैलने का खतरा और बढ़ जाता है।
प्रकोप की वर्तमान स्थिति
गुजरात में इस समय चंदिपुरा वायरस के प्रकोप ने सबको चिंता में डाल दिया है। राज्य में संक्रमण के कारण, सबसे अधिक प्रभावित जिले साबरकांठा, अरावली, महिसागर और खेड़ा हैं। पड़ोसी राज्यों राजस्थान और मध्य प्रदेश से भी कुछ मामले सामने आए हैं। उत्तरी गुजरात के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में संक्रमण की स्थिति अधिक गंभीर है।
रोकथाम और सावधानियां
चंदिपुरा वायरस के खिलाफ विशेष टीका उपलब्ध नहीं है, इसीलिए इसे रोकने के लिए मुख्यत: बचाव के उपायों पर ध्यान देना होता है। संक्रमित मक्खियों और मच्छरों के काटने से बचने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करें, सुरक्षात्मक कपड़े पहनें और घर की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। जनसमूहों में जाने से बचने का प्रयास करें और यदि बुखार के लक्षण महसूस हों, तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श करें।
उपचार
इस वायरस का कोई विशेष एंटीवायरल उपचार नहीं है, इसीलिए चिकित्सक मुख्यत: लक्षणों को नियंत्रित करने और मस्तिष्कशोथ से बचाव पर ध्यान देते हैं। इसमें बुखार को कम करने, दस्त और उल्टी को रोकने और शरीर के तरल पदार्थों का स्तर बनाए रखने जैसे उपाय शामिल होते हैं। समय पर उपचार से ही मरीज की जान बचाई जा सकती है।
सरकारी प्रयास और अपील
गुजरात सरकार ने इस संक्रमण को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। स्वास्थ्य मंत्री रुशिकेश पटेल ने जनता से अपील की है कि वे आवश्यक सावधानियां बरतें और किसी भी प्रकार के लक्षण महसूस होने पर तुरंत चिकित्सा सहायता प्राप्त करें। सरकार ने खासतौर पर उन जिलों में मेडिकल टीम एवं अन्य संसाधनों की व्यवस्था की है, जहां से संक्रमण के सबसे अधिक मामले सामने आए हैं।
निष्कर्षत: चंदिपुरा वायरस का प्रकोप बेहद गंभीर स्थिति में है और इसे रोकने के लिए जन-सहयोग और उचित स्वास्थ्य उपायों की आवश्यकता है।
इस वायरस के बारे में पहले सुना था, पर गुजरात में इतना बड़ा प्रकोप हो रहा है, ये तो चिंता की बात है। ग्रामीण इलाकों में मच्छरों के नियंत्रण का कोई योजना नहीं, बस डॉक्टरों को गुस्सा आता है।
ये वायरस बालू मक्खी से फैलता है? तो फिर बालू मक्खी के नियंत्रण के लिए सरकार को बर्फ जैसे एजेंट का उपयोग करना चाहिए, जो उनके अंडे मार दे। मैंने एक पेपर पढ़ा था, जिसमें कहा गया था कि इसके लिए जैविक नियंत्रण सबसे अच्छा है।
इस वायरस के बारे में सोचो तो ये बस एक चेतावनी है कि हमने प्रकृति के साथ क्या व्यवहार किया है। जंगल काटे, नदियां बंद कर दीं, बालू मक्खियों के बसेरे बदल गए। अब वो आ गए हैं, और हम उन्हें बुरा कह रहे हैं। शायद ये एक नए संतुलन की शुरुआत है।
मेरी चाची का बेटा इससे पीड़ित हुआ था... वो दो दिन में चल बसा। अब मैं घर के बाहर जाने से डरती हूं। क्या कोई मुझे बता सकता है कि इस वायरस से बचने के लिए क्या घरेलू नुस्खा है? मैंने तो अजवाइन का तेल लगाया था, पर काम नहीं किया।
ये सब बकवास है। बस एक नया वायरस आया, और पूरी राजनीति शुरू हो गई। इसका नाम बदल दिया जाए, तो ये सब खत्म हो जाएगा।
चंदिपुरा वायरस का जीनोम अभी तक पूरी तरह सीक्वेंस नहीं हुआ है। ये एक बुनियादी त्रुटि है - बिना जीनेटिक डेटा के, उपचार की रणनीति अधूरी है। वैज्ञानिक संस्थानों को तुरंत एक डेटा शेयरिंग पोर्टल बनाना चाहिए।
ये सब अपराध है। ग्रामीण आबादी को निर्माण के लिए बेकार जमीन पर रखा गया, फिर उन्हें वायरस का शिकार बनाया जा रहा है। ये जनहित के नाम पर नहीं, बल्कि लॉबी के नाम पर नरसंहार है।
मैंने अपने गांव में एक नेटवर्क बनाया है - जो भी बुखार हो जाए, उसे तुरंत टेस्ट करवाया जाता है। हमने खुद के घरों में मच्छरदानी लगाईं, और बच्चों को बाहर नहीं जाने देते। अगर हम सब ऐसा करें, तो ये वायरस बाहर नहीं निकलेगा।
सरकार क्या कर रही है? बस टीवी पर बोल रही है। इस वायरस के कारण अब तक 6 लोग मर चुके हैं, और तुम लोग अभी भी बातें कर रहे हो? ये तो जानलेवा अनदेखा है!
ये सब तो एक अतिरंजित चिंता है। बालू मक्खियां तो हमेशा से रही हैं, लेकिन अब डेटा और टेक्नोलॉजी के कारण हम इसे ज्यादा देख रहे हैं। अगर आप इसे एक बड़ी आपात स्थिति बनाएंगे, तो असली समस्याएं - जैसे पानी की कमी - अनदेखी हो जाएंगी।
मैंने एक गांव में जाकर देखा - वहां लोगों ने अपने घरों के आसपास नीम के पेड़ लगाए हैं, और रात में आग जलाकर मच्छरों को भगा रहे हैं। ये बहुत साधारण बात है, लेकिन काम कर रही है। इसे फैलाने की जरूरत है।
मैंने एक डॉक्टर से बात की जिन्होंने इस वायरस के साथ काम किया है - उनके मुताबिक, अगर मरीज को 24 घंटे के भीतर तरल पदार्थ दे दिए जाएं, तो उसकी जान बच जाती है। लेकिन गांवों में जब तक अस्पताल नहीं पहुंचते, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसलिए फील्ड टीम जरूरी है।