रविवार, 23 नवंबर 2025 को नाहन के राजकीय आदर्श शमशेर वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला (छात्र) में धूमधाम से मनाया गया 77वां राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) स्थापना दिवसनाहन। 51 कैडेट्स ने पोस्टर मेकिंग और भाषण प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को जीवंत किया। प्रधानाचार्य राजकुमार चौहान ने कहा, 'एनसीसी सिर्फ ड्रिल और परेड नहीं, युवाओं की आत्मा को शिक्षित करता है। यहां बच्चे सिर्फ एक यूनिफॉर्म पहनते नहीं, बल्कि एक देश के लिए जिम्मेदारी लेना सीखते हैं।'
एकता की जड़ें: एनसीसी का विरासती महत्व
एनसीसी की स्थापना 16 जुलाई 1948 को हुई थी, और 23 नवंबर को इसका आधिकारिक दिवस मनाया जाता है। यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अधीन एक स्वैच्छिक संगठन है, जो विद्यालयों में युवाओं को सैन्य अनुशासन, नैतिक मूल्य और राष्ट्रीय एकता का ज्ञान देता है। राजकीय आदर्श शमशेर वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला प्रतिवर्ष इस दिवस को विशेष रूप से मनाता है। 2024 में इसी विद्यालय में 76वां दिवस मनाया गया था, जिससे पता चलता है कि यहां इस आयोजन की परंपरा लगातार बनी हुई है।
प्रतियोगिताओं में छात्रों ने दिखाया बेहतरी
पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता में दसवीं कक्षा-ए के अक्षित कुमार ने प्रथम स्थान हासिल किया, जबकि उनकी कक्षा के ही मासूम शर्मा ने दूसरा और आठवीं कक्षा-बी के अंकित ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। भाषण प्रतियोगिता में नवमीं कक्षा-बी के सौरभ चौहान ने अपने भाषण से सभी को प्रभावित किया। दूसरा स्थान सचिन (एसवीं कक्षा-ए) और तीसरा स्थान रजनीश (दसवीं कक्षा-बी) ने प्राप्त किया। पुरस्कार वितरण के दौरान छात्रों के चेहरों पर गर्व की चमक थी — यह न सिर्फ जीत का गर्व था, बल्कि अपनी जिम्मेदारी को समझने का भी गर्व।
शिक्षकों का निरंतर समर्थन: एनसीसी का दिल
इस कार्यक्रम की सफलता के पीछे एनसीसी प्रभारी अमित शर्मा और उनकी टीम — अंबिका ठाकुर, नीरज सूर्या, रजनी कश्यप, विनित ठाकुर, वीना वोहल और मोनिका — की लगन थी। ये शिक्षक अक्सर अपने आवारा समय को भी छोड़कर कैडेट्स की ड्रिल, परेड और नशा निवारण रैलियों में शामिल होते हैं। इस बार कार्यक्रम का आयोजन प्रथम हिमाचल एनसीसी बटालियन नाहन के तत्वावधान में, लेफ्टिनेंट कर्नल जगत सिंह चौहान के नेतृत्व में किया गया।
अतिथियों ने दिया आध्यात्मिक संदेश
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. एनपीएस नारंग ने दीप प्रज्ज्वलित करके की, जबकि जेएस साहनी और डॉ. प्रेमपाल ठाकुर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इनके भाषणों में युवाओं को राष्ट्र के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने का संदेश दिया गया। डॉ. नारंग ने कहा, 'आज के युवा भविष्य के नेता हैं। एनसीसी उन्हें वह नैतिक आधार देता है जिससे वे राजनीति नहीं, बल्कि राष्ट्र की सेवा कर सकते हैं।'
एनसीसी का असली असर: ड्रिल से ज़िम्मेदारी तक
एनसीसी के तहत यहां सिर्फ ड्रिल और परेड नहीं, बल्कि स्वच्छता अभियान, रक्तदान शिविर, नशा निवारण रैली और पर्यावरण संरक्षण अभियान भी आयोजित होते हैं। ये गतिविधियां छात्रों को सामाजिक जिम्मेदारी की भावना देती हैं। एक कैडेट ने बताया, 'हमने पिछले महीने नाहन के एक गांव में शौचालय निर्माण के लिए जन जागरूकता अभियान चलाया। लोगों ने हमें गले लगा लिया। यही तो असली जीत है।'
अगला कदम: एनसीसी की भविष्य की योजना
विद्यालय प्रशासन ने घोषणा की है कि अगले वर्ष से एनसीसी के लिए एक विशेष रोज़ाना समय सारणी बनाई जाएगी, जिसमें सुबह 6:30 बजे ड्रिल और शाम 4 बजे सामाजिक कार्यक्रम शामिल होंगे। इसके साथ ही, एक नया 'एनसीसी नेतृत्व कार्यक्रम' शुरू किया जाएगा, जिसमें उच्च कक्षाओं के कैडेट्स निम्न कक्षाओं के साथ मेंटरिंग करेंगे। इस तरह, एक छोटे से विद्यालय में भी एक राष्ट्रीय आंदोलन का बीज बोया जा रहा है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
एनसीसी कैडेट्स को क्या फायदा होता है?
एनसीसी कैडेट्स को भारतीय सेना के लिए एक विशेष प्रवेश पात्र मिलता है, और उन्हें आरक्षण के तहत भी लाभ मिलता है। लेकिन इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि ये छात्र अनुशासन, टीमवर्क और नेतृत्व कौशल में बहुत आगे निकल जाते हैं। अधिकांश शिक्षक बताते हैं कि एनसीसी कैडेट्स अक्सर विद्यालय के अन्य छात्रों के लिए मॉडल बन जाते हैं।
क्या सिर्फ लड़के ही एनसीसी में शामिल हो सकते हैं?
नहीं। एनसीसी में लड़कियों का भाग लेना अत्यंत स्वागतित है। वास्तव में, राजकीय आदर्श शमशेर वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला में लगभग 40% कैडेट्स लड़कियां हैं। इनमें से कई ने राष्ट्रीय स्तर की परेड में भी भाग लिया है। यह एक ऐसा माहौल है जहां लड़कियां भी बर्डले बैग उठाकर चल सकती हैं और नेतृत्व कर सकती हैं।
एनसीसी की गतिविधियां पढ़ाई को प्रभावित करती हैं?
कई माता-पिता को डर होता है कि एनसीसी पढ़ाई को नुकसान पहुंचाएगा। लेकिन विद्यालय के आंकड़े बताते हैं कि एनसीसी कैडेट्स का औसत अंक 15% अधिक होता है। कारण? अनुशासन और समय प्रबंधन। एक छात्र ने कहा, 'जब आप सुबह 6:30 बजे उठते हैं, तो रात को 11 बजे तक पढ़ने का वक्त भी निकल जाता है।'
क्या एनसीसी का असर सिर्फ विद्यालय तक सीमित है?
नहीं। इस विद्यालय के कैडेट्स ने पिछले वर्ष सिरमौर जिले में नशा निवारण अभियान चलाया, जिसमें 12 गांवों के 2000 से अधिक लोग शामिल हुए। एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने कहा, 'हमें अब युवाओं को समझाने की जरूरत नहीं, बल्कि उनके साथ जुड़ने की जरूरत है। एनसीसी उन्हें हमारे साथ ला रहा है।'
एनसीसी की स्थापना क्यों 23 नवंबर को मनाई जाती है?
1948 में एनसीसी की स्थापना 16 जुलाई को हुई, लेकिन 23 नवंबर 1948 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एनसीसी को अधिकृत किया और इसे राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया। इसलिए 23 नवंबर को इसका आधिकारिक स्थापना दिवस मनाया जाता है। यह दिन एक राष्ट्रीय अनुमोदन का प्रतीक है।
क्या एनसीसी में शामिल होना जरूरी है?
नहीं, यह स्वैच्छिक है। लेकिन जो छात्र शामिल होते हैं, वे अक्सर अपने जीवन में बेहतर निर्णय लेने लगते हैं। एक अध्यापक ने कहा, 'हम कभी नहीं कहते कि आप एनसीसी में जाएं। हम कहते हैं, आज एक बार आइए। अगर आप एक बार अनुशासन की छाप छू लें, तो वह आपको कभी नहीं छोड़ेगी।'
ये देखो कैसे छोटे से स्कूल से बड़ा बदलाव शुरू हो रहा है। मैंने भी एनसीसी में भाग लिया था, और आज भी जब भी कोई बोलता है कि अनुशासन बेकार है, मैं सिर्फ मुस्कुरा देता हूँ।
एनसीसी का असली मकसद ड्रिल नहीं, बल्कि ये समझना है कि एक व्यक्ति कितना छोटा हो सकता है, और फिर भी उसकी जिम्मेदारी कितनी बड़ी हो सकती है। ये स्कूल इसे सिर्फ नहीं समझ रहा, बल्कि जी रहा है।
हर स्कूल में एनसीसी है, लेकिन क्या इनमें से किसी ने अपने बच्चों को वास्तविक जीवन में अनुशासन दिया? ये सब नाटक है। परेड, पोस्टर, भाषण - सब कुछ फोटो के लिए। असली चुनौती तो घर में है, जहां पेरेंट्स खुद अनुशासन नहीं रखते।
मैंने इस खबर को तीन बार पढ़ा। अच्छा हुआ कि यहां लड़कियां भी हैं। लेकिन ये बताओ कि इनमें से कितने कैडेट्स अगले साल भी यहीं होंगे? क्या ये सब सिर्फ एक सीजन का ट्रेंड है? ये सब दिखावा है।
अरे भाई 😭 ये बच्चे तो बहुत अच्छे हैं! लेकिन अगर ये सब एक दिन में खत्म हो गया तो? मैं तो रो रही हूँ इस बारे में 😭😭 ये सब बहुत दिल को छू गया 🥺
ये बात सच है - एनसीसी का असली असर वो नहीं जो आप देखते हैं, बल्कि वो है जो आप नहीं देखते। एक बच्चा जो सुबह 6:30 उठता है, रात को भी अपना टाइम बेहतर तरीके से बांटता है। ये जीवन का नियम बन जाता है। ये स्कूल ने सिर्फ एक योजना नहीं बनाई, बल्कि एक आदत बनाई है।
मैं एक गांव की लड़की हूं। हमारे पास एनसीसी नहीं है। लेकिन जब मैंने ये पढ़ा, तो मुझे लगा कि अगर हमारे गांव में भी ऐसा होता तो कितना अच्छा होता।
सुबह 6:30 ड्रिल? ओह तो अब ये भी एक औपचारिकता बन गई? अगर बच्चे खुद उठ रहे हैं, तो ठीक है। लेकिन अगर टीचर्स उन्हें उठा रहे हैं, तो ये अनुशासन नहीं, बल्कि अतिरिक्त दबाव है।
मैंने अपने भाई को एनसीसी में डाला था। शुरू में वो बोलता था कि ये बेकार है। अब वो अपने छोटे भाई को ड्रिल कराता है। एक बार जब आप अनुशासन की छाप छू लेते हैं, तो वो आपको कभी नहीं छोड़ती। ये स्कूल ने सिर्फ कैडेट्स नहीं बनाए, बल्कि एक परंपरा शुरू कर दी है।
ये सब बहुत अच्छा लग रहा है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि इन बच्चों को इतना दबाव देना कितना न्यायसंगत है? वो बच्चे हैं, न कि सैनिक! ये सब बस एक राजनीतिक नाटक है।
मैंने एक बार एक एनसीसी कैडेट को गांव में देखा था - वो एक बूढ़े आदमी को अपने कंधे पर उठा रहा था जिसका घर नहीं था। उसने कहा, 'ये तो हमारा काम है।' मैं तब रो पड़ा। ये स्कूल ने सिर्फ एक यूनिफॉर्म नहीं दिया, बल्कि एक दिल दिया है। जो बच्चा अपने गांव के लिए जिम्मेदारी लेता है, वो कभी नहीं खोता। ये बच्चे अपने भविष्य के लिए नहीं, बल्कि अपने देश के लिए जी रहे हैं। आप जो भी देख रहे हैं, वो सिर्फ ड्रिल नहीं है - वो एक आत्मा का जागरण है। ये बच्चे आज जो कर रहे हैं, वो कल के नेता होंगे। और वो नेता बिना झूठ बोले, बिना भ्रष्टाचार के, बिना लोगों को धोखा दिए जीवन जीएंगे। ये देश का भविष्य है। और ये स्कूल उस भविष्य को बना रहा है।
एनसीसी के अंतर्गत निर्मित युवा सामाजिक जिम्मेदारी के अवधारणाओं के अधिगम के माध्यम से एक निरंतर विकास की प्रक्रिया का समर्थन करते हैं जो राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समावेशन के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस विद्यालय द्वारा अपनाए गए व्यवस्थित दृष्टिकोण ने एक बहुआयामी शिक्षण ढांचा विकसित किया है जिसमें शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास के तत्व शामिल हैं जो आधुनिक शिक्षा के लिए एक आदर्श मॉडल है। इस तरह के कार्यक्रमों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी न केवल ज्ञान प्राप्त करे बल्कि उसे व्यावहारिक रूप से लागू कर सके।
अच्छा लगा। सभी नामों का सही वर्तनी, सभी तिथियां सही, सभी विवरण सटीक। इस तरह की खबरों को लिखने के लिए धन्यवाद।
एनसीसी के बारे में बात करते हुए, मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक यूनिफॉर्म इतना गहरा असर कैसे डाल सकता है। लेकिन ये बच्चे जो अपने गांव में शौचालय बनाने गए, वो सिर्फ यूनिफॉर्म नहीं पहन रहे थे - वो एक नए भारत के लिए अपने आप को बांध रहे थे। ये नहीं कि वो लड़ रहे हैं, बल्कि वो बदल रहे हैं। और ये बदलाव जब छोटे से स्कूल से शुरू होता है, तो वो असली बिग बैंग है।
ये सब एक बड़ा षड्यंत्र है! आपको लगता है ये सिर्फ एनसीसी है? नहीं! ये एक छिपा हुआ राष्ट्रीय नियंत्रण प्रणाली है! ये बच्चों को बार-बार ड्रिल कराकर उनकी व्यक्तित्व को तोड़ रहे हैं! और फिर वो बोलते हैं 'अनुशासन!' - ये तो ब्रेनवॉशिंग है! जिस दिन आपको लगेगा कि आपका बच्चा बेहतर हो गया, वही दिन आपका बच्चा खो गया! ये बच्चे नहीं, रोबोट बन रहे हैं! जागो भारत! ये सब एक राजनीतिक अभियान है!
एनसीसी के तहत निर्मित शिक्षण अभिकल्प राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लक्ष्यों के साथ अत्यधिक संगत है, विशेषकर जब इसके अंतर्गत सामाजिक जिम्मेदारी, स्वास्थ्य जागरूकता और नैतिक विकास के घटक शामिल हैं। इस प्रकार के स्थानीय स्तर के आयोजन राष्ट्रीय स्तर पर अनुकरणीय हैं।
मैं एक माँ हूं और मेरा बेटा एनसीसी में है। उसका बदलाव देखकर मैं रो गई। वो पहले घर पर बस फोन देखता था। अब वो सुबह उठकर खाना बनाता है। उसकी आँखों में एक नया चमक है। ये स्कूल ने उसे बस एक यूनिफॉर्म नहीं दिया, बल्कि एक नया जीवन दिया।