दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा मामला आजकल हर सुबवब के काफ़ी चर्चे में है। एक तरफ़ एक्स‑एनसीबी ज़ोनल डायरेक्टर Sameer Wankheal को लेकर बौछार होती बहस, और दूसरी तरफ़ Netflix की नई वेब‑सीरीज़ ‘The Ba***ds of Bollywood’ को परखा जा रहा है। इस सीरीज़ को Aryan Khan ने डायरेक्ट किया है, वही किड़ी जिसने 2021 के क्रूज़ केस में शाहरुख़ खान के बेटे को गिरफ्तार कर वर्ल्ड पब्लिसिटी में लाया था। अब वही केस फिर से सिरीज़ में बुन रहा है, पर इस बार हक़ीक़त कोर्टरूम में ले जाया गया है।
सूट के मुख्य बिंदु
Wankheal ने अपने कानूनी याचिका में ठोस बिंदु रखे हैं:
- सीरीज़ में खुलते एपिसोड में एक कड़े‑संकल्प वाले अधिकारी का किरदार है, जो सफ़ेद शर्ट और काले पैंट में, तेज़ आवाज़ में ‘ड्रग्स के ख़िलाफ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़ं बौछार कर रहा है।
- वह किरदार Wankheal के दिखावे, हेयरस्टाइल और तेज़‑ट्रेड के साथ लगभग मिलते‑जुलते हैं, जिससे वह तर्क देते हैं कि यह ‘उन्हें अपमानित करने’ का इरादा रखता है।
- उन्होंने 2 करोड़ रुपये के नुकसान की मांग की है, लेकिन खास शर्त यह रखी है कि यह रकम Tata Memorial Cancer Hospital को दान की जाए।
- सूट में शाहरुख़ खान, उनका व्यवसाय Red Chillies Entertainment, Netflix और कई प्रॉडक्शन हाउस को प्रतिवादियों के रूप में जोड़ा गया है।
वकील आदित्य गिरी की टीम ने अदालत को बताया कि इस तरह का निराधार चित्रण ‘अधिकारियों के खिलाफ सार्वजनिक भरोसा घटा सकता है’ और ‘क़ानूनी प्रक्रिया को बाधित कर सकता है’। उनका मानना है कि जब तक 2021 के ड्रग केस का न्यायालय में फैसला नहीं निकलता, ऐसे बयानों का सार्वजनिक प्रसारण एक बड़ा जोखिम बन जाता है।

उद्योग पर संभावित असर
यह मामला सिर्फ एक व्यक्तिगत शिकायत नहीं, बल्कि भारतीय मनोरंजन जगत में रचनात्मक स्वतंत्रता और वैध अधिकारों के बीच नई सीमा तय कर सकता है। अगर अदालत इसको ‘डिफ़ेमेशन’ मानती है, तो कई निर्माताओं को सावधान रहने पर मजबूर होना पड़ेगा।
सबसे पहले, इस केस से यह स्पष्ट होगा कि वास्तविक जीवन के वैध अधिकारियों को ‘फ़िक्शन’ में किस हद तक दिखाया जा सकता है। कुछ लोग कहेंगे कि यह बिन‑रोक के नाटक के रूप में स्वीकृत हो ही सकता है, पर दूसरी ओर के दलील में कहा जा रहा है कि यह ‘ज्यादा ही सटीक’ और ‘बदनाम‑खींची’ हुई छवि पेश कर रहा है।
इसके अलावा, इस तरह के मुकदमों से ‘स्ट्रिमिंग प्लेटफ़ॉर्म्स’ पर कंटेंट मॉडरेशन की ज़रूरत और भी बढ़ सकती है। Netflix जैसी कंपनियों को अपनी प्री‑प्रोडक्शन फ़ाइलों में लीगल क्लियरेंस टीमों को और ज़्यादा सख़्त बनाना पड़ सकता है, ताकि भविष्य में ऐसे विवादों से बचा जा सके।
हिंट के तौर पर, defamation lawsuit से जुड़ी इस दावेदारी ने पहले ही आवाज़ उठे हुए कुछ अन्य मामलों को भी रोशन किया है। एक उदाहरण है ‘The Ba***ds of Bollywood’ का दूसरा विवाद, जिसमें Ranbir Kapoor को इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के बिना चेतावनी के दिखाने हेतु NHRC ने फ़िल्मी जाँच की मांग की थी।
अगर इस केस में कोर्ट यह मान लेता है कि सीरियल ने वाकई में Wankheal का अपमान किया है, तो यह शाब्दिक रूप से एक precedent बन जाएगा—भविष्य में हल्के‑फुल्के ‘इंस्पायर्ड बाय ट्रू इवेंट्स’ के शोज़ को भी बारीकी से जांचना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में सर्जनात्मक लेखकों को अपनी कहानी में पात्रों को ‘परिवर्तित’ करने या उनका ‘काल्पनिक’ रूप देने की आवश्यकता होगी, बजाय वास्तविक लोगों के सिधे नक़्क़ाशी करने के।
यहाँ तक कि मार्केटिंग और प्रमोशन टीमों को भी सावधान रहना पड़ेगा। ‘किसी भी ज्ञात केस को बेसमेंट में ले जाने’ वाले विज्ञापनों को अब ‘भारी’ निरीक्षण का सामना करना पड़ सकता है। अन्य ओर, दर्शकों की प्रतिक्रिया भी इस केस से प्रभावित हो सकती है। कई लोग इस सीज़न को ‘जवाबदेही’ की लकीर के रूप में देख रहे हैं, जबकि कुछ ‘सिंसेटिक फ़्रेंडली’ ढंग से इसे देख रहे हैं।
फ़िल्म और टेलीविज़न के अलावा, इस मसले ने भारत के राजनैतिक और सामाजिक परिदृश्य को भी नई दिशा दी है। कई सामाजिक कार्यकर्ता यह कह रहे हैं कि सार्वजनिक वर्ग में अधिकारियों के बारे में सटीक जानकारी और फिक्शन के बीच अंतर स्पष्ट होना चाहिए, ताकि जनता में भ्रम या असहायता का माहौल न बने।
वर्तमान में, दिल्ली हाई कोर्ट ने वांखेले की याचिका को स्वीकार करके सुनवाई के लिए तारीख तय की है। अगले हफ्तों में दोनों पक्षों के वकीलों से दलीलें सुनी जाएँगी, फिर न्यायालय तय करेगा कि इस शो का किरदार ‘रियल लाइफ़ इन्स्पिरेशन’ है या ‘इंटेंस डिफ़ेमेशन’।
बिंदु यह है कि इस मुकदमे का नतीजा न केवल इस एक शो को प्रभावित करेगा, बल्कि आने वाले कई फिक्शन प्रोजेक्ट्स की रचना‑शैली, उत्पादन‑प्रक्रिया और रिलीज़‑टाइमलाइन को भी बदल देगा। जैसा कि हमारे साथियों ने कहा, ‘बिना सतर्कता के हम फिर से उसी फंदे में फँस सकते हैं’—और यही बात इस कानूनी जंग को बेइंतिहा रोचक बनाती है।