बेंगलुरु के मान्याता टेक पार्क में बाढ़ का कहर
बेंगलुरु में मंगलवार सुबह से हो रही भारी बारिश ने मान्याता टेक पार्क का हाल बिगाड़ दिया है। 300 एकड़ में फैला यह तकनीकी पार्क पूरी तरह से पानी में डूबा हुआ है। बरसाती पानी के कारण वहां के रास्तों पर यात्रा करना मुश्किल हो गया है और पार्क में कार्यरत आईटी प्रोफेशनल को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। आईटी हब के रूप में प्रसिद्ध इस पार्क के रास्ते जलमग्न हो जाने से कार्यालय में काम कर रहे कर्मचारियों को जल्द से जल्द अपने घर पहुंचने की सलाह दी गई है ताकि यातायात जाम में फंसने से बचा जा सके।
मौसम विभाग की चेतावनी
भारतीय मौसम विभाग ने यह अनुमान लगाया है कि अक्टूबर 14 से 17 के बीच बेंगलुरु में हल्की से भारी बारिश हो सकती है। इसके अलावा बेंगलुरु रूरल, चिकबल्लापुरा और कोलार जिलों में भी तेज बारिश की संभावना है। इस पूर्वानुमान के बीच बैठकों और कामकाज के लिए आवागमन करने वाले लोगों को सावधान रहने और उचित योजना बनाने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया पर लोग टेक पार्क के अंदर की स्थिति को लेकर चिंतित हैं और अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। इनमें से एक उपयोगकर्ता ने कहा कि, ‘टेक पार्क के भीतर हर ओर झीलें और झरने नजर आ रहे हैं।’
बेंगलुरु की ढहती बुनियादी संरचना
इस स्थिति ने बेंगलुरु की बुनियादी संरचना की खामियों को भी उजागर कर दिया है, विशेषकर बारिश के मौसम में। प्रत्येक वर्ष बारिश के समय इसी प्रकार की स्थितियों का सामना करना पड़ता है, फिर भी पर्याप्त तैयारी नहीं होती। स्थानीय सरकार के लिए इन मुद्दों को हल करना और नागरिकों को राहत प्रदान करना अत्यावश्यक है। बारिश के चलते शहर में यातायात विभाग भी परेशान है, क्योंकि हेब्बल पुल पहले से ही वाहनों के भारी दबाव में है।
नागरिकों की प्रतिक्रिया और भविष्य की राह
अनेकों नागरिकों ने इस समस्या को लेकर अपनी असहमति और दुःख व्यक्त किया है। आईटी प्रोफेशनल, जो टेक पार्क के प्रमुख उपयोगकर्ता हैं, बारिश में यह जलजमाव देख कर नाखुश हैं। मानसून में भीड़भाड़ और जलजमाव की ऐसी समस्याओं के साथ निपटने के लिए बेहतर योजना और संसाधनों की आवश्यकता है। आने वाले 2-3 दिनों के लिए भी मौसम विज्ञानियों ने भारी बारिश की चेतावनी दी है, जिसके चलते सभी नागरिकों को सतर्क रहने की आवश्यकता है।
ये बारिश तो हर साल होती है, लेकिन हर साल हम नए नए तरीके से उसे अनदेखा करते हैं। बेंगलुरु की ड्रेनेज सिस्टम तो 1990 के दशक में बनी थी, और अब इसमें 50 लाख लोग रह रहे हैं। कोई सुधार नहीं, कोई योजना नहीं - बस भागो और घर जाओ।
ये सब अफवाहें हैं। असली समस्या ये है कि आईटी कंपनियां अपने ऑफिसेस के लिए लोकल इंफ्रास्ट्रक्चर को नजरअंदाज कर रही हैं। उन्होंने अपने बिल्डिंग्स को बनाया, लेकिन ड्रेनेज, रोड्स, और ट्रांसपोर्ट का कोई ख्याल नहीं। ये निर्माण जगह के नियमों का उल्लंघन है।
भाई, ये जलजमाव देखकर मुझे लगा जैसे बेंगलुरु का एक बड़ा बाथरूम बंद हो गया हो। बारिश के बाद जमीन पर पानी नहीं, तो ये शहर कैसे चलेगा? ये तो जीवन का नियम है - पानी जहां जाना है, वहां जाने दो। नहीं तो ये शहर डूब जाएगा।
मैं आज सुबह 6 बजे टेक पार्क के बाहर खड़ी थी... पानी घुटनों तक था। मेरी बहन ने फोन किया और पूछा, 'तू अभी भी वहां है?' मैंने कहा, 'हां, लेकिन मैं अभी भी जिंदा हूं।' ये शहर तो बस बारिश के लिए तैयार नहीं है - ये तो बारिश के लिए बना ही नहीं है।
हम सब इस बारिश को एक आपदा के रूप में देख रहे हैं, लेकिन ये तो एक अलर्ट है। हमारी शहरी योजनाएं अभी भी 20वीं सदी की हैं, जबकि हम 21वीं सदी में रह रहे हैं। हमने अपने लोगों को शहर के बाहर रख दिया है, और फिर उन्हें शहर में लाने की कोशिश कर रहे हैं। ये तो एक बड़ा डिज़ाइन फेल्योर है। बेंगलुरु को फिर से बनाना होगा - न कि सुधारना।
मौसम विभाग की चेतावनी तो हर साल आती है। लेकिन क्या हमने कभी कोई योजना बनाई? नहीं। हम तो बस इंतजार करते हैं कि कोई और कुछ करे। ये असफलता नहीं, ये अनदेखा है। और अनदेखा का नतीजा हमेशा यही होता है - जलमग्न टेक पार्क।
मैंने देखा है कि कुछ लोग अभी भी ऑफिस जा रहे हैं। ये बेवकूफी है। बारिश के बाद भी ऑफिस जाना एक बहाना है। ये तो बस बॉस के सामने दिखावा है। असली प्रोफेशनल तो घर से काम करता है।
मैंने इस साल बारिश के दौरान अपनी बाइक पर निकलकर देखा - रास्ते तो नहीं, बस झीलें थीं। लेकिन जब मैंने एक बूढ़े आदमी को बाइक धकेलते देखा, तो मुझे लगा - ये शहर तो अभी भी जिंदा है। बस उसे सही दिशा देनी होगी।
ये सब गैर-हिंदुओं की वजह से हो रहा है। वे अपने शहरों में नहीं बनाते, लेकिन यहां आकर बस जाते हैं। हमारी संस्कृति में बारिश का जो अर्थ है, वो उन्हें समझ नहीं आता। इसलिए ये बाढ़ हो रही है।
असली समस्या ये नहीं कि बारिश हो रही है - असली समस्या ये है कि हम अभी भी एक गांव की सोच से बाहर नहीं निकल पाए हैं। ये शहर तो एक गांव का बड़ा विस्तार है - और गांव में तो पानी जम जाता है। इसे शहर नहीं, गांव का अनुकरण कहो।