भारी बारिश से विकराल स्थिति
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में प्रशंसा की जा रही भारी बारिश अब स्थानीय लोगों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गई है। निरंतर हो रही तेज बारिश के कारण पूरे शहर में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। विशेष रूप से रामकृष्ण पुरम क्षेत्र में स्थिति अत्यधिक मुश्किल हो गई है, जहां कई गाड़ियां पूरी तरह से जलमग्न हो गई हैं। इसके चलते यातायात व्यवस्था भी ठप पड़ गई है।
राहत एवं बचाव कार्य में पुलिस और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की टीमें पूरी तत्परता के साथ जुटी हैं। उन्होंने आपदा प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने और पुनर्वास केंद्रों में बसाने के लिए कड़ी मेहनत की है। इस बीच, जीवन की हानि भी घटी है। आंध्र प्रदेश में बारिश से संबंधित घटनाओं में कम से कम आठ लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से पाँच की मौत विजयवाड़ा के मोगलराजपुरम में भूस्खलन के कारण हुई है।
बाढ़ का कहर
बाढ़ के कारण विजयवाड़ा की अधिकांश सड़कें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। गाड़ियाँ पानी में डूब गई हैं और अनेक क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति ठप हो गई है। प्रभावितों में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी जान का जोखिम उठाते हुए सुरक्षित स्थानों की तलाश की है। इसके साथ ही, कई घर और दुकानें बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जिनमें सैंकड़ों का नुकसान हो चुका है।
इंफ्रास्ट्रक्चर को हुआ भारी नुकसान
हालांकि यह समस्या सिर्फ आंध्र प्रदेश तक सीमित नहीं है। पड़ोसी राज्य तेलंगाना में भी बाढ़ और भारी बारिश का असर साफ दिखाई दे रहा है। महबूबाबाद जिले के केसामुद्रम के पास एक रेलवे ट्रैक के नीचे की मिट्टी बह गई, जिससे यातायात बाधित हो गया।
रेलवे के अधिकारियों ने स्थिति का जायजा लिया और जल्द से जल्द मार्ग को फिर से चालू करने का आश्वासन दिया है।
अन्य मुद्दों पर प्रकाश
वहीं देश के अन्य हिस्सों में भी घटनाएं घटी हैं। महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के नेताओं ने एक विरोध मार्च निकाला, तमिलनाडु के खेल और युवा कल्याण मंत्री उद्धयनिधि स्टालिन ने चेन्नई में एक फॉर्मूला 4 नाइट स्ट्रीट रेस को हरी झंडी दिखाई, और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने भारत-बांग्लादेश के संबंधों पर एक बयान दिया।
हालांकि, विजयवाड़ा में बाढ़ का मुद्दा सबसे प्रमुख है और वहां की स्थिति गंभीर बनी हुई है। बाढ़ के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, और लोगों को राहत तथा पुनर्वास की सख्त जरूरत है।
राहत कार्य और आगे की राह
सरकार और स्थानीय प्रशासन लगातार राहत कार्यों में जुटा हुआ है। भारी बारिश के बाद उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए अतिरिक्त संसाधन और विकास जरूरतें हैं। अधिकारियों ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण किया और लोगों को यथासंभव मदद देने का वादा किया है।
हालांकि आपदा के बाद की स्थिति को सामान्य बनाने में समय लगेगा, लेकिन स्थानीय जनता की सहयोग, सहेजने की भावना और सरकार की योजनाओं के सामंजस से इस चुनौती को सामना किया जा सकता है।
स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए नागरिकों को सावधानी बरतने की सलाह दी गई है और जरूरत पड़ने पर मदद के लिए अधिकारियों से संपर्क करने का अनुरोध किया गया है। आने वाले दिनों में प्रशासन और राहत टीमें मिलजुलकर काम करती रहेंगी ताकि जनता को अधिक से अधिक राहत दी जा सके।
विजयवाड़ा की स्थिति देखकर दिल टूट गया। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं - सब बारिश के बीच बहते पानी में फंसे हुए। ये सिर्फ बाढ़ नहीं, ये निर्माण की लापरवाही का परिणाम है। कोई ड्रेनेज नहीं, कोई योजना नहीं, बस चुपचाप बारिश का इंतजार करना।
इस तरह की आपदाओं में व्यक्तिगत संकट के साथ-साथ सामाजिक असमानता भी सामने आती है। जिनके पास पानी के ऊपर घर है, वो बच जाते हैं। जिनके पास बस एक छत है, वो डूब जाते हैं। ये सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं, ये राजनीतिक असमानता का नतीजा है।
तेलंगाना में रेलवे ट्रैक बह गया और महाराष्ट्र में विरोध मार्च निकाला गया और तमिलनाडु में फॉर्मूला 4 रेस हुई और बांग्लादेश ने बयान दिया - सब कुछ बता रहा है कि ये देश किस तरह का है। बाढ़ में लोग मर रहे हैं और ट्विटर पर बहस चल रही है कि कौन सा नेता किसका बेटा है।
इन सब आपदाओं का कारण है वो लोग जो देश के लिए नहीं, बल्कि अपने घर के लिए काम करते हैं। जो रेलवे ट्रैक बनाते हैं वो खुद के लिए बेहतर घर बनाते हैं। जो सड़कें बनाते हैं वो अपने बच्चों को अमेरिका भेज देते हैं। अगर ये देश बचेगा तो इन लोगों को निकालना होगा।
सब कुछ ठीक हो जाएगा।
क्या हमने कभी सोचा है कि ये बारिशें पहले भी आती थीं, लेकिन अब उनका असर इतना भयानक क्यों है? क्या हमने नदियों को बंद कर दिया है? क्या हमने जंगलों को काट दिया है? क्या हमने जमीन को बेच दिया है? ये सब एक साथ आ गया है। ये न केवल बाढ़ है, ये हमारी अनुपस्थिति का दर्द है।
विजयवाड़ा में जिन लोगों ने अपना घर खो दिया है, उनके लिए एक छोटा सा बैग और एक गर्म खाना बहुत कुछ है। मैंने अपने घर के बाहर एक रसोई लगा दी है। अगर कोई आए, तो बस बैठ जाएं। खाना और गर्माहट दोनों जरूरी हैं।
आज विजयवाड़ा की बाढ़ का खबर आई, कल तेलंगाना की रेलवे ट्रैक की। लेकिन ये सब एक ही तार पर बंधे हुए हैं। हमारे शहरों को बाढ़ के लिए तैयार नहीं किया गया। हमारे नियम बनाने वाले ने नहीं सोचा कि जलवायु बदल रही है। अब ये लोग बचाने के लिए आ रहे हैं, लेकिन बचाने से पहले रोकना होगा।
आप सब बाढ़ की बात कर रहे हैं, लेकिन क्या आपने देखा कि विजयवाड़ा के बाहर जिन लोगों के घर बन रहे हैं, वो नदी के किनारे हैं? वो जमीन जिस पर अब बाढ़ आ रही है, वो जमीन जिसे बेचा गया था एक बिल्डर को जिसके पास दो गाड़ियाँ हैं और एक बाहरी देश का पासपोर्ट।
इस आपदा के बाद हमें एक नया दृष्टिकोण अपनाना होगा। न केवल बाढ़ के लिए राहत देनी होगी, बल्कि इसकी जड़ों को समझना होगा। हमारे शहरी नियोजन में जलवायु अनुकूलन को शामिल करना होगा। हमें नदियों के प्राकृतिक बहाव को बरकरार रखना होगा। हमें निर्माण नियमों को बदलना होगा। ये सब एक दिन में नहीं होगा, लेकिन अगर हम आज शुरू नहीं करेंगे, तो कल कोई नहीं बचेगा।
मैंने विजयवाड़ा के एक बच्चे को देखा, जो अपने खिलौने को बचाने के लिए पानी में डूब रहा था। मैं रो रही हूँ। क्या ये देश हमारा है? क्या हमारे बच्चे इतना दर्द झेलेंगे? मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा भी एक दिन ऐसा देखे।