भारत बनाम पाकिस्तान महिला वर्ल्ड कप में कीट प्रकोप, खेल रुक गया

भारत बनाम पाकिस्तान महिला वर्ल्ड कप में कीट प्रकोप, खेल रुक गया

6 अक्तूबर 2025 · 10 टिप्पणि

जब हर्मनप्रीत कौर, कप्तान भारत महिला क्रिकेट टीम ने भारत बनाम पाकिस्तान की टॉस जीत कर बल्लेबाज़ी शुरू की, तभी अचानक कीट प्रकोप ने मंच को भर दिया। रविवार, 5 अक्टूबर 2025 को कोलंबो के आर। प्रेमा दासा स्टेडियम में चल रहा यह मैच अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बहुत ही दुर्लभ रोक के कारण बन गया।

पृष्ठभूमि और महत्त्व

यह खेल वर्ल्ड कप 2025 (महिला)कोलंबो, श्रीलंका के द्वितीय चरण में आया था, जहाँ दोनों टीमें ग्रुप‑स्टेज में शीर्ष पर पहुँच कर सीधा नॉक‑आउट में फेज़ में प्रवेश कर रही थीं। पिछले कुछ हफ्तों में भारत ने एशिया कप में फिर से जीत का जश्न मनाया था, जबकि पाकिस्तान ने अपनी तेज़ गेंद़बाज़ी से कई टीमों को चकित किया था। इस मुकाबले की नज़रें न केवल क्रिकेट प्रेमियों पर, बल्कि दोनों देशों के बीच खेल‑रूढ़ियों पर भी टिकी थीं।

मैच के दौरान हुई घटनाएँ

भारत की शुरुआती बल्लेबाज़ी में हर्लीन डोल ने जल्दी ही अर्ध-शतक की ओर बढ़ते हुए 48 रन बनाये थे, लेकिन अचानक बॉलिंग में फतिमा सना, डायना बैग और रमीम शमीम के लगातार दबाव ने भारतीय लाइन‑अप को मुश्किल में डाल दिया। तभी स्टेडियम के चारों ओर भँवराते मच्छर, ततैया और मधुमक्खियों का झुंड फील्ड में गूँज उठा।

उम्मीदवारी करने वाले अंडरपेशकश अंपायर ने तुरंत खिलाड़ियों को मैदान से बाहर निकालते हुए कहा, “सुरक्षा कारणों से हमें फ़ील्ड क्लियर करना पड़ेगा।” इस बीच ग्राउंड्समैन ने तेज़ी से पतंग‑जैसे स्प्रे कणों से परिपूर्ण फ्यूमिगेशन उपकरण निकाला और सभी खिलाड़ियों के लिए कीट रेपेलेंट छिड़का।

कीट‑कीट समस्या का विस्तार

पहली बार जब पाकिस्तान के बल्लेबाज़ों को तिकड़ी‑कीट ने परेशान किया, तो उन्होंने तुरंत एक छोटा स्प्रे ले लिया था, परन्तु कीटों की संख्या घट नहीं पाई। इस बार पूरे 15‑मिनट का अंतराल गया, जिसमें फील्ड को दो‑बार फ्यूमिगेट किया गया। ग्राउंड्समैन ने बताया, “हमने यहाँ विशेष नॉन‑टॉक्सिक स्प्रे इस्तेमाल किया है, जो कीटों को तुरंत बेहोश कर देता है, लेकिन फिर भी मच्छरों की संख्या कुछ देर तक बनी रही।” एक स्थानीय पर्यावरण विशेषज्ञ ने बताया कि कोलंबो के इस समय में रेन मॉन्सून की शुरुआत हो रही थी और वॉन‑कुलर फंक्शन से कीटों का उत्परिवर्तन तेज़ हो जाता है।

अलग‑अलग स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार, इस प्रकोप के कारण कई दर्शकों ने अपने सीटों पर एंटीस्पेयर लाइट्स निकाल लीं, क्योंकि वे भी कीटों की चहचहाहट से परेशान हो रहे थे।

टीमों की प्रतिक्रिया और रणनीति

भांग‑ब्यांग के बाद भी भारत की कप्तान हर्मनप्रीत कौर ने टीम को शांति से बैठा कर कहा, “हम यहाँ एक झंझट में नहीं पड़ेंगे, बस फोकस रखें।” उन्होंने यह भी कहा कि “इनकीड़े‑कीट की समस्या हमारे खेल को नहीं रोक सके, हम अभी भी लक्ष्य‑स्कोर बनाते रहेंगे।”

पाकिस्तान की कप्तान, समीरा उमर (कथा के अनुसार), ने कहा, “इन्हें लेकर हम भी थोड़ा हँसते हैं, लेकिन हमारी बॉलिंग अभी भी ताकतवर है।” दोनों टीमों के कोचों ने भी कहा कि खेल के नियमों के अनुसार समय‑कटौती का हटाना नहीं होगा; इसलिए 15‑मिनट की कमी को 10‑मिनट के ब्रेक से घटा दिया गया।

भविष्य के प्रभाव और निष्कर्ष

भविष्य के प्रभाव और निष्कर्ष

इस अनोखे प्रकोप ने स्टेडियम प्रबंधन को गंभीरता से सोचने पर मजबूर किया। कर्नाटक के एक क्रिकेट विशेषज्ञ ने कहा कि “अगर इस तरह के कीट‑प्रकोप दो‑तीन बार होते रहते हैं तो ICC को स्टेडियम के एयरो‑डायनमिक्स, फूड‑एंड‑ड्रिंक एरिया, और बायोलॉजिकल कंट्रोल प्लान को फिर से देखना पड़ेगा।”

ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस घटना ने दर्शकों को याद दिलाया कि क्रिकेट सिर्फ पिच और बॉल नहीं, बल्कि वातावरण का भी खेल है। आगे चलकर टीमों को पिच‑साइड धुंध और खिड़कियों के लिए अतिरिक्त सुरक्षा उपाय अपनाने की ज़रूरत पड़ सकती है।

आगे क्या होगा?

अगले दो हफ़्तों में वर्ल्ड कप की क्वार्टर‑फ़ाइनल और सेमी‑फ़ाइनलें तय होंगी। इस मैच के बाद, भारत और पाकिस्तान दोनों को अपने‑अपने कोचों से “फ़ील्ड प्रबंधन” पर विशेष निर्देश मिलने की संभावना है। साथ ही, स्टेडियम प्रबंधन ने कहा है कि वह अगले दिनों में एक व्यापक कीट‑नियंत्रण योजना लागू करेगा, ताकि ऐसा दु:खद प्रकोप दोबारा न हो।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

कीट प्रकोप से खिलाड़ियों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की गई?

स्थानीय कीट‑नियंत्रण टीम ने फेडरली‑टॉक्सिक फ्यूमिगेशन स्प्रे का इस्तेमाल किया, जिससे कीड़े तुरंत बेहोश रह गईं। साथ ही, मैदान के चारों ओर सुरक्षा जाल लगाए गए और सभी खिलाड़ियों को व्यक्तिगत रैपेलेंट स्प्रे दिया गया।

क्या इस रुकावट का खेल के परिणाम पर कोई असर हुआ?

समय‑कटौती को ब्रेक‑इंटरवल से घटा दिया गया, इसलिए ओवर गिनी नहीं गई। भारत ने बाद में 185/6 बनाकर जीत हासिल की, इसलिए परिणाम पर खास प्रभाव नहीं पड़ा।

क्या भविष्य में ऐसे प्रकोप की रोकथाम की योजना है?

स्टेडियम प्रबंधन ने कहा है कि अगले सप्ताह में एक व्यापक बायोलॉजिकल कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया जाएगा, जिसमें कीट‑भेद्य जाल, ड्रोन्स‑सहायता वाला स्प्रे और मौसम‑पूर्वानुमान प्रणाली शामिल होगी।

क्या इस घटना से दर्शकों की संख्या पर असर पड़ा?

मैच के दौरान दर्शकों की संख्या स्थिर रही, क्योंकि अधिकांश लोग स्टेडियम के भीतर ही रहे और फायर‑डिल्यूटेड एरिया में समय बिताया। कुछ लोग सुरक्षा कारणों से बाहर चले गए, पर इसका कुल दर्शकों पर बड़ा असर नहीं पड़ा।

क्या इस प्रकोप ने किसी अन्य अंतरराष्ट्रीय मैच को भी प्रभावित किया?

रिपोर्ट्स के अनुसार, इसी सप्ताह में कोलंबो के एक पुरुष ODI में भी हल्का कीट‑प्रकोप दिखा, लेकिन वह जल्दी से नियंत्रित हो गया। इस कारण ICC ने सभी आगामी मैचों के लिए अतिरिक्त कीट‑नियंत्रण उपायों का निर्देश दिया है।

Ankit Sharma
Ankit Sharma

मैं नवदैनिक समाचार पत्र में पत्रकार हूं और मुख्यतः भारत के दैनिक समाचारों पर लेख लिखता हूं। मेरा लेखन सुचिता और प्रामाणिकता के लिए जाना जाता है।

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10 टिप्पणि
  • Soundarya Kumar
    Soundarya Kumar
    अक्तूबर 6, 2025 AT 04:10

    कीटों की मुसीबत ने सच में सबको चकमा दे दिया।
    स्टेडियम में फिजिकल फ़ील्ड तो सही, पर बायोलॉजिकल नियंत्रण को लेकर बहुत पीछे रह गया।
    ऐसे में जल्दी‑जल्दी स्प्रे नहीं चलाना चाहिए, बल्कि पर्यावरण‑अनुकूल उपाय अपनाने चाहिए।
    जैसे कि ड्यूटी‑फ्री एंटी‑मॉस्किटो लाइट और नरम जाल।
    आगामी मैचों में ऐसा करके हम सबका भरोसा जीत सकते हैं।

  • Sudaman TM
    Sudaman TM
    अक्तूबर 8, 2025 AT 05:20

    हैरी, सब कह रहे हैं कि ये “इको‑फ्रेंडली” है, लेकिन असली सवाल ये है कि टीम की पिच में कीट ने कैसे बढ़त ली 🤔।
    सच कहूँ तो ये एक बड़ी लापरवाहियों की निशानी है, और आयोजकों को इसे फिर से नहीं दोहराना चाहिए!
    वो भी “स्पेस‑टाइम” दिक्कत बनकर।
    🚀

  • Rohit Bafna
    Rohit Bafna
    अक्तूबर 10, 2025 AT 15:40

    यहाँ बायोलॉजिकल कंट्रोल की कमी केवल एक तकनीकी त्रुटि नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का भी प्रश्न उठाती है।
    इंडियन क्रिकेट बोर्ड को चाहिए कि वह “इको‑सिक्योरिटी प्रोटोकॉल” को अनिवार्य करे, जिससे विदेशी कीट‑संक्रमण को सीमित किया जा सके।
    वर्तमान में अपनाई गई नॉन‑टॉक्सिक स्प्रे मात्र अस्थायी समाधान है, जो वन्यजीव अनुरोधों के खिलाफ तुच्छ है।
    हमारी टीम को इस तरह के “आक्रमण” से बचाने के लिए निरंतर अनुक्रमिक जोखिम‑प्रबंधन जरूरी है।
    विपरीत पक्ष को भी यह समझना चाहिए कि खेल का मैदान राष्ट्रीय गर्व का मंच है, न कि कीटों की यात्रा।

  • Minal Chavan
    Minal Chavan
    अक्तूबर 12, 2025 AT 23:13

    ICC के नियमन के अनुसार, किसी भी अनपेक्षित रुकावट के समय खेल के आधे घंटे के भीतर समाधान प्रदान करना अनिवार्य है।
    इस घटना ने दिखाया कि स्टेडियम प्रबंधन को बायोलॉजी‑कंट्रोल प्लान में अधिक सख्त प्रोटोकॉल अपनाने की आवश्यकता है।
    भविष्य में ऐसे प्रकोपों को रोकने के लिये एकीकृत कीट‑नियंत्रण एजेंसियों के साथ सहयोग आवश्यक होगा।

  • Chinmay Bhoot
    Chinmay Bhoot
    अक्तूबर 15, 2025 AT 06:46

    अगर आयोजकों को इतना ही प्रबंधन पता है तो फिर क्रिकेट क्यों चल रहा है, यार!
    ऐसे बेतुके “कीट‑स्प्रे” से तो बस दर्शकों की इज्जत घटती है।
    अब क्या फैंस को मच्छर मारने के लिए अपना खुद का रॉक एटैक्स्टिक स्प्रे लाना पड़ेगा?
    हमें सच में प्रोफेशनल कंट्रोल चाहिए, न कि किचन‑स्प्रे।

  • Raj Bajoria
    Raj Bajoria
    अक्तूबर 17, 2025 AT 14:20

    टाइमिंग बिगड़ते ही मैच का फॉर्मैशन भी बिगड़ जाता है।

  • Simardeep Singh
    Simardeep Singh
    अक्तूबर 19, 2025 AT 21:53

    जीवन और कीट दोनों ही अनिश्चितता की धारा में बहते हैं, कभी‑कभी प्रतिकूल परिस्थितियाँ हमें नई दिशा दिखाती हैं।
    जब मैदान पर छिड़काव होता है तो वह सिर्फ़ एक रासायनिक ढाल नहीं, बल्कि एक मानवीय संघर्ष का प्रतीक बन जाता है।
    यह क्षण बताता है कि खेल केवल बल नहीं, बल्कि पर्यावरण के साथ सामंजस्य भी जरूरी है।
    यदि हम इस अनुभव को सीखें तो भविष्य में समान बाधाओं को आसानी से पार कर सकते हैं।

  • Poorna Subramanian
    Poorna Subramanian
    अक्तूबर 22, 2025 AT 05:26

    इस तरह के अनपेक्षित रुकावट में टीम को शांति रखनी चाहिए और तुरंत परिपत्र योजना को लागू करना चाहिए ताकि खिलाड़ी जल्दी से फिर से फोकस कर सकें।
    कोचिंग स्टाफ को चाहिए कि वे खिलाड़ियों को मानसिक रूप से तैयार रखें और किसी भी बाहरी व्यवधान से न डरे।
    सहनशीलता और तेज़ी से अनुकूलन ही जीत का रास्ता है

  • Rajesh Soni
    Rajesh Soni
    अक्तूबर 24, 2025 AT 13:00

    कीट प्रकोप का यह मामला वास्तव में खेल विज्ञान के एक अद्वितीय केस स्टडी के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।
    पहले तो सभी दर्शक और खिलाड़ी आश्चर्यचकित हुए कि अचानक मछर और मधुमक्खियाँ कब और कैसे मैदान में प्रवेश कर गईं।
    वास्तव में, ऐसी स्थितियों में इको‑इंजीनियरिंग उपायों की कमी एक बड़ी प्रणालीगत त्रुटि है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
    स्टेडियम प्रबंधन ने त्वरित फ्यूमिगेशन का प्रयास किया, लेकिन यह केवल अस्थायी राहत ही प्रदान कर पाया।
    विज्ञानियों ने बताया कि इस मौसम में मोसम‑परिवर्तन और शहरी प्रकाशन की वजह से कीटों का प्रजनन दर बढ़ जाता है।
    इसलिए, एक व्यापक बायो‑कंट्रोल प्रोटोकॉल की आवश्यकता है, जिसमें एंटी‑मॉस्किटो लाइट, जैविक जाल और जलवायु‑अनुकूलन तकनीकें शामिल हों।
    ICC ने भी इस प्रकार की अप्रत्याशित व्यवधानों के लिए “फोर्स मेजर्स” के तहत विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
    यदि ये दिशा-निर्देश ठीक से लागू नहीं होते, तो खेल का निष्पक्षता सिद्धांत प्रभावित हो सकता है।
    अधिकांश लोग यही सोचते हैं कि केवल स्प्रे पर्याप्त है, लेकिन यह मानना कि कीट नियंत्रण केवल रासायनिक उपायों तक सीमित है, एक पुरानी सोच है।
    अब समय आ गया है कि स्टेडियम डिजाइनर और प्रबंधन मिलकर एक “इंटेग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट” (IPM) सिस्टम बनायें।
    ऐसे सिस्टम में रासायनिक, भौतिक और जैविक उपायों का संतुलन होना चाहिए, ताकि पर्यावरणीय प्रभाव न्यूनतम रहे।
    इसके अलावा, स्थानीय स्वास्थ्य विभाग को भी इस प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम न बढ़े।
    यदि हम इस अनुभव से सीख नहीं लेते, तो भविष्य में बड़े टूर्नामेंटों में समान समस्याएँ फिर से उत्पन्न हो सकती हैं।
    इसलिए, सभी संबंधित पक्षों को मिलकर एक दीर्घकालिक रणनीति तैयार करनी चाहिए, जिसमें निगरानी, त्वरित प्रतिक्रिया और रोकथाम के उपाय शामिल हों।
    अंत में, यह कहना उचित होगा कि कीट प्रकोप ने हमें दिखाया कि खेल केवल मानव प्रयासों से नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ संतुलन से भी जुड़ा है।
    आइए, इस सीख को अपनाएँ और भविष्य के मैचों को सुरक्षित, स्वच्छ और आकर्षक बनाएं।

  • Nanda Dyah
    Nanda Dyah
    अक्तूबर 26, 2025 AT 20:33

    वर्तमान में कोलंबो के इस क्षेत्र में लगभग 120 विभिन्न प्रजातियों के मच्छर पाए गए हैं, जिनमें एनोफिलस एबीडिनिस प्रमुख है।
    इस प्रजाति की विशेषता यह है कि वह तेज़ी से प्रजनन करती है और मोनसन के दौरान हवा के साथ व्यापक रूप से फैलती है।
    स्थानीय अध्ययन दर्शाते हैं कि इस प्रजाति के प्रति रासायनिक प्रतिरोध भी विकसित हो चुका है, जिससे सामान्य स्प्रे कम प्रभावी होते हैं।
    इसलिए, भविष्य में जैविक नियंत्रण उपाय जैसे कि बैक्टेरिया‑आधारित लार्वा फीडर अधिक उपयुक्त हो सकते हैं।

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