बिहार पुलिस ने 26 सितंबर को कांस्टेबल पद के लिए आधिकारिक परिणाम घोषित किया। इस बार 99,190 उम्मीदवार फिज़िकल एफ़िशिएंसी टेस्ट (PET) में सफल रहे, जिसमें बिहार पुलिस की भर्ती प्रक्रिया की कठोरता साफ़ झलकती है।
परिणाम में पुरुष‑महिला अनुपात
कुल पास हुए अभ्यर्थियों में 62,822 पुरुष और 36,834 महिला शामिल हैं। इसका मतलब है कि महिलाओं ने लगभग 37% सीटें पकड़ीं, जबकि शीर्षक में दावा किया गया था कि महिला उम्मीदवारों ने 52% से अधिक स्थान जीत लिए। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वास्तविक प्रतिशत शीर्षक से काफी कम है।
भर्ती का व्यापक परिप्रेक्ष्य
इस भर्ती अभियान में कुल 19,838 कांस्टेबल पद उपलब्ध कराए गए थे। लिखित परीक्षा 16 जुलाई से 3 अगस्त तक सात चरणों में आयोजित की गई, जिसमें उम्मीदवारों को सामान्य ज्ञान, भाषा और गणित जैसे विषयों में परीक्षण दिया गया। लिखित परीक्षा के बाद PET का चरण आया, जहाँ शारीरिक क्षमता, दौड़ और सहनशक्ति का मूल्यांकन किया गया।
पुरुष‑महिला अनुपात को देखते हुए, कई महिला अभ्यर्थियों ने इस परिणाम को अपने भविष्य के लिए प्रेरणा माना है। हालांकि, 37% हिस्सा भी दर्शाता है कि महिला प्रतिनिधित्व को और बढ़ाने की जरूरत है, विशेषकर पुलिस जैसी शक्ति संरचना में।
- कुल पासकर्ता: 99,190
- पुरुष पासकर्ता: 62,822
- महिला पासकर्ता: 36,834
- रिक्त पद: 19,838
- लिखित परीक्षा अवधि: 16 जुलाई‑3 अगस्त 2025
आगे के चरणों में चयनित अभ्यर्थियों को डॉक्टरेट और मेडिकल जांच के बाद अंतिम नियुक्ति की सूचना दी जाएगी। बिहार पुलिस ने इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता को बनाए रखने का वादा किया है।
37% महिलाएं निकलीं तो बहुत अच्छी बात है। बिहार पुलिस में ऐसा आंकड़ा पहले कभी नहीं देखा। अब बस इनका सम्मान करना चाहिए, न कि आंकड़ों को छोटा दिखाना।
यार ये शीर्षक तो बिल्कुल clickbait है! 37% को 52% बता दिया, फिर भी ये आंकड़ा बहुत बड़ी बात है। महिलाओं ने दौड़ में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया, फिर भी कुछ लोग बोल रहे हैं कि 'अभी भी कम है'। बस एक बार खुद को देख लो, तुम घर में बेटी को अपनी चादर नहीं बांधते तो बाहर पुलिस बनने देना भी मुश्किल है।
अब तो ये लोग अपनी लड़कियों को पुलिस बनाने के लिए तैयार कर रहे हैं? भारत की आत्मा को तोड़ रहे हो तुम! महिलाएं घर की रक्षा करें, पुलिस तो पुरुषों का काम है। ये आंकड़े बनाकर दिखाने की चाल है, असली देशभक्ति कहाँ है?
यहाँ एक राजनीतिक गणित का खेल चल रहा है। यदि हम एक व्यापक दृष्टिकोण से देखें, तो यह एक विकासशील राज्य में महिला प्रतिनिधित्व के लिए एक अच्छा प्रारंभिक बिंदु है। लेकिन यदि हम इसे एक समाज के आधार पर मापें, तो यह अभी भी एक अपेक्षित गति से कम है। अतः, यह न केवल एक सांख्यिकीय विश्लेषण है, बल्कि एक सामाजिक परिवर्तन का संकेत भी है।
37% बहुत अच्छा है, लेकिन अगर हम लिखित परीक्षा में महिलाओं के प्रदर्शन को देखें, तो शायद वो और भी ज्यादा निकली होंगी। PET में फिजिकल टेस्ट का दबाव बहुत ज्यादा है। अगर इसे थोड़ा समायोजित किया जाए तो ये आंकड़ा 45% तक जा सकता है। बस थोड़ा समर्थन चाहिए।
मैंने अपनी बहन को इस परीक्षा के लिए तैयार किया था। वो लिखित में टॉप 50 में थी, लेकिन PET में एक मिनट कमी से बाहर हो गई। ऐसी कई लड़कियाँ हैं जिनका दिमाग तो तेज है, लेकिन शरीर उनके साथ नहीं खेल रहा। अगर इन लड़कियों को ट्रेनिंग दी जाए तो ये आंकड़ा अच्छा बन सकता है।
37% तो बहुत अच्छा है अगर आप देखें तो बिहार में लड़कियां पढ़ने तक नहीं जातीं तो ये आंकड़ा बहुत बड़ी बात है। कोई भी बात नहीं बनाओ बस इन्हें सलाम करो। ये लड़कियां अपने घर के दबाव को तोड़कर आई हैं।
37%?? ये तो एक बड़ी धोखेबाजी है! पुरुषों को तो फिजिकल टेस्ट में जान देनी पड़ती है, और महिलाओं को आसानी से चुन लिया जा रहा है! ये नियुक्ति अनुपात बिल्कुल गलत है! ये सब कोई लोगों के लिए नहीं, बल्कि वोटों के लिए हो रहा है! ये भारत की आत्मा को बेच रहे हैं!
इन महिलाओं को बधाई देने की जरूरत है, न कि आंकड़े काटने की। ये लड़कियां अपने परिवार के विरोध के बावजूद यहाँ आईं। उनके पीछे कहानियाँ हैं - एक ने अपनी शादी टाल दी, एक ने गाँव से शहर आकर बस एक बार टेस्ट देने के लिए। ये आंकड़ा बस एक नंबर नहीं, ये उनकी जिद है।
इस परिणाम को देखकर एक बात स्पष्ट होती है - शक्ति का अर्थ शारीरिक बल नहीं, अर्थात निर्णय लेने की क्षमता है। यदि एक महिला लिखित परीक्षा में टॉप करती है, तो उसकी बुद्धि उसके शरीर से अधिक महत्वपूर्ण है। पुलिस एक नियंत्रण बल है, न कि एक बल प्रदर्शन का मंच। हम यहाँ भावनाओं के बजाय तर्क की ओर बढ़ रहे हैं।
37% तो बहुत है यार बस इतना ही बताना है। अगर ये आंकड़ा 20% होता तो लोग बोलते थे कि बिहार में लड़कियां नहीं पढ़तीं। अब जब 37% हो गया तो बोल रहे हैं कि ये कम है। लोगों का दिमाग ही बदल गया है। अब तो हर चीज को आलोचना करने की आदत है।
अरे यार तुम लोग इतना बड़ा बहस क्यों कर रहे हो? ये लड़कियां जो आईं वो जीत गईं। बाकी जो नहीं आईं वो डर गईं। ये आंकड़ा नहीं, ये आत्मविश्वास है। अब इनके लिए ट्रेनिंग सेंटर बनाओ, अच्छे बोर्ड लगाओ, घर जाकर उनकी तारीफ करो। बस इतना ही चाहिए।