सेबी बनाम हिंडनबर्ग: मधाबी बुच ने अपने पति के अदानी-लिंक वाले IPE-प्लस फंड में निवेश का कारण बताया
सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) की अध्यक्ष मधाबी पुरी बुच ने हाल ही में हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के जवाब में विस्तृत स्पष्टीकरण दिया है। इन आरोपों के तहत, उनके पति धवल बुच की अदानी-लिंक ऑफशोर फंड में निवेश को लेकर सवाल उठाया गया था।
निजी जीवन से जुड़ी परतें
मधाबी और धवल बुच का कहना है कि यह निवेश 2015 में, तब किया गया था जब वे दोनों सिंगापुर में निजी नागरिक के तौर पर रह रहे थे। इस समय मधाबी सेबी से संबंध नहीं रखती थीं। यह निवेश अनिल आहूजा के साथ धवल की बचपन की मित्रता के कारण हुआ, जो उस समय फंड के चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर थे। आहूजा की पेशेवर पृष्ठभूमि सिटीबैंक, जे.पी. मॉर्गन और 3i ग्रुप पीएलसी में एक सफल इन्वेस्टिंग करियर के रूप में प्रतिष्ठित थी।
धवल बुच ने बताया कि उनके लिए यह निवेश एक व्यक्तिगत निर्णय था, न कि कोई व्यावसायिक लाभ उठाने की कोशिश। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस निवेश का उद्देश्य किसी भी तरह से अदानी समूह के शेयरों में हिस्सेदारी लेना नहीं था।
फंड मैनेजमेंट का बयान
360 वन एसेट मैनेजमेंट, जो इस ऑफशोर फंड का प्रबंधन करता है, ने भी इस बात की पुष्टि की कि फंड ने अदानी समूह के किसी भी शेयर में कोई निवेश नहीं किया। इसके अलावा, जब अनिल आहूजा ने 2018 में अपनी स्थिति छोड़ दी, तो बुच परिवार ने अपनी निवेश राशि निकाल ली।
धवल बुच की नियुक्ति का मामला
हिंडनबर्ग ने धवल बुच की 2019 में ब्लैकस्टोन प्राइवेट इक्विटी में सीनियर एडवाइजर के रूप में नियुक्ति को भी सवालों के घेरे में रखा था। इसे सेबी द्वारा ब्लैकस्टोन समर्थित REIT IPOs की स्वीकृति के साथ एक हितों के टकराव के रूप में देखा गया। बुच परिवार ने इन आरोपों को भी नकारते हुए कहा कि धवल की नियुक्ति उनकी आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में विशेषज्ञता के कारण की गई थी और उनका रियल एस्टेट क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं था।
सेबी के नियमों का पालन
सेबी के नियम, विशेष रूप से REITs से संबंधित, कई सार्वजनिक विचार-विमर्शों के बाद बोर्ड द्वारा अनुमोदित होते हैं। मधाबी बुच ने यह भी कहा कि उन्होंने संभावित हितों के टकराव के मामलों से खुद को अलग कर लिया है और सभी आवश्यक खुलासे किए गए हैं।
निष्कर्ष
इस मामले में, बुच परिवार ने जोर देकर कहा है कि सभी आरोपों का जवाब सही तथ्यों के साथ दिया गया है और हिंडनबर्ग द्वारा उठाए गए सवालों का कोई आधार नहीं है। सेबी अध्यक्ष मधाबी पुरी बुच के इस स्पष्टीकरण ने स्थिति को स्पष्ट करने और अपने परिवार की ईमानदारी और पेशेवर नैतिकता को सुरक्षित रखने का प्रयास किया है।
ये सब बातें तो बस धुंधला धोखा है 🤭 जब तक बड़े लोगों के परिवार में निवेश है, तब तक सच का कोई रास्ता नहीं। सेबी का नाम लेकर क्या बन रहा है? बस एक चादर जिससे गंदगी ढक दी जाती है।
अरे भाई, ये सब तो बिल्कुल लोगों के दिमाग में घुस गया है। अगर कोई दोस्त के साथ 2015 में फंड में पैसा डाल दे, तो अब 10 साल बाद उसे गैंगस्टर समझ लिया जाए? बस थोड़ा बैकग्राउंड चेक कर लो, फिर बात करो।
मैंने तो सोचा था ये कोई बड़ा स्कैंडल है, लेकिन ये तो बस एक दोस्त की वजह से एक निवेश की बात है। अगर आहूजा ने अदानी के शेयर खरीदे होते तो बात अलग होती, लेकिन नहीं तो ये तो बस एक बुक रिकॉर्ड है।
मुझे लगता है कि अगर सब कुछ साफ बता दिया गया है तो शायद ये सब बस एक बड़ा ड्रामा है। कोई भी इतना ज्यादा बात नहीं करता अगर उसके पास कुछ गलत न हो। लेकिन फिर भी शायद बस एक तरह का विश्वास बनाने की कोशिश है।
अरे भाई ये सब बातें तो बस एक बड़े गेम का हिस्सा है। जब तक आपका नाम बुच है, तब तक आप जो भी करोगे उसे गलत ही समझा जाएगा। हिंडनबर्ग ने तो बस एक नाम लेकर शोर मचाया है। ये सब तो बस शेयर बाजार का एक नया खेल है। अब तो कोई भी बड़ा नाम लेकर निवेश करे तो उसे फंड रैकेट बता देते हैं।
2015 में निवेश और 2018 में निकाल लेना? बिल्कुल बेस्ट टाइमिंग है। जब अदानी का शेयर उछाल रहा था, तब निवेश, और जब शक शुरू हुआ, तब निकाल लिया। ये तो बस एक नियमित फंड रैकेट का नमूना है। और अब बता रहे हैं कि ये दोस्ती का निवेश था? बस एक बड़ा झूठ।
ये जो बातें हो रही हैं, वो तो मन को बहुत दुख देती हैं। एक इंसान जो सेबी की अध्यक्ष है, उसका परिवार भी इतना बड़ा बुरा नहीं हो सकता। लेकिन जब तक हम लोग एक दूसरे पर शक करते रहेंगे, तब तक कोई सच नहीं मिलेगा। बस एक बड़ा ट्रैजेडी है।
सेबी के नियमों के अनुसार, एक अध्यक्ष के परिवार के निवेश का खुलासा अनिवार्य है। यदि यह खुलासा पूर्णतः किया गया है और निवेश वित्तीय रूप से स्वतंत्र था, तो कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन यदि निवेश का समय और निकासी का समय अदानी समूह के बाजार चलन के साथ मेल खाता है, तो यह एक नियमित अनुशासनात्मक अंतराल का संकेत है।
अगर ये फंड अदानी के शेयर में नहीं निवेश कर रहा था, तो ये तो बस एक डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो का उदाहरण है। लेकिन फिर भी, इंस्टीट्यूशनल गवर्नेंस के लिए, इस तरह के निवेशों की ट्रांसपेरेंसी बहुत जरूरी है। अगर बुच ने ये सब खुलासा कर दिया, तो ये एक अच्छा अभ्यास है।
मुझे लगता है कि हम सब थोड़ा शांत हो जाएं। अगर सब कुछ साफ है, तो इसका जवाब भी साफ होना चाहिए। अगर कुछ गलत है, तो उसे खोज लें। लेकिन इतना ज्यादा शोर मत करो।
इंसान के जीवन में दोस्ती, भाईचारा, और विश्वास का महत्व होता है। अगर कोई अपने बचपन के दोस्त के साथ एक निवेश करता है, तो ये बिल्कुल नैतिक है। अगर हम इसे भ्रष्टाचार समझने लगे, तो फिर तो हम सबके जीवन की हर छोटी बात पर शक करना पड़ेगा। ये तो बस एक इंसानी बात है।
बस एक बात कहूं? ये सब बातें बिल्कुल फेक हैं। अदानी के बिना ये फंड कहाँ जाता? और अगर आहूजा ने अदानी के साथ काम किया होता, तो ये तो बस एक बड़ा फ्रॉड है। और अब बुच ने खुलासा किया? बस एक शोर है।
2015 में निवेश, 2018 में निकाल लिया... और अब सेबी की अध्यक्ष हैं? 😏 बस एक बड़ा स्मार्ट गेम है। और हां, बुच बहन, आपका नाम बहुत अच्छा है... लेकिन ये सब बातें तो बस एक बड़ी फिल्म है।