आत्मनिर्भर भारत: समझें क्या है असली मतलब

आत्मनिर्भर भारत का मतलब सिर्फ ‘इंडीपनडेंट’ होना नहीं, बल्कि हर किसी को अपने काम खुद करने की सोच है। जब हम अपने देश की चीज़ें बनाते हैं, तो न सिर्फ़ नौकरियां बनती हैं, बल्कि क़ीमतें भी कम होती हैं। आप सोच रहे होंगे, ये कैसे होता है? चलिए, एक-एक करके समझते हैं।

सरकारी फ़ोकस: मेक इन इंडिया और उसका असर

सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ को फुर्सत से नहीं छोड़ा। नए फ़ैक्ट्री, ऋण सुविधा, टैक्स में छूट – सब कुछ छोटे‑वड़े उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए बनाया गया। इससे सिर्फ़ बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि छोटे कस्बों में भी उद्योग बढ़े। इससे स्थानीय स्तर पर सामग्रियों की उपलब्धता बढ़ी, और आयात पर निर्भरता घटाई।

स्वदेशी चीज़ें खरीदने के फ़ायदे

जब आप किसी स्वदेशी प्रोडक्ट को चुनते हैं, तो आप सीधे ही भारतीय किसान, कारीगर या छोटे निर्माता को सपोर्ट कर रहे होते हैं। इसका मतलब है बेहतर रोजगार, कम आयात टैक्स, और पर्यावरणीय लाभ – क्योंकि लम्बी दूरी की सप्लाई चेन कम होती है। उदाहरण के तौर पर, अगर आप बनाना या लोहा-इस्पात का स्थानीय ब्रांड चुनते हैं, तो ट्रांसपोर्टेशन की लागत और कार्बन फ़ुटप्रिंट दोनों घटते हैं।

इसके अलावा, आत्मनिर्भरता का एक और असर है कि कीमतें स्थिर रहती हैं। विदेश के बाजार में मंदी या लीवर्ड ट्रेड डिस्प्यूट से बचने के लिए भारत अपने खुद के उत्पादन को बढ़ाता है, इसलिए आप वही चीज़ कम कीमत पर पा सकते हैं।

आपको शायद लगे कि स्वदेशी उत्पाद अभी भी महंगे हैं। दरअसल, शुरुआती दौर में निवेश और सेट‑अप की लागत होती है, पर जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता है, कीमतें घटती हैं। यही कारण है कि कई बड़े ब्रांड अब स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग प्लांट खोल रहे हैं।

अगर आप व्यक्तिगत रूप से आत्मनिर्भरता में योगदान देना चाहते हैं, तो यहाँ कुछ आसान कदम हैं:

  • स्थानीय मार्केट में खरीदारी करें – सब्ज़ी, कपड़े, जूते, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स आदि।
  • ‘जॉब्स क्रिएशन’ स्कीम के तहत छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए सरकारी लोन पढ़ें।
  • सिंहावलोकन की वेबसाइट पर ‘स्वदेशी’ टैग वाले प्रोडक्ट खोजें और तुलना करें।

एक बात और, आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य सिर्फ़ आर्थिक नहीं, सामाजिक भी है। जब स्थानीय उद्योग बढ़ते हैं, तो आप्रवासन की दर घटती है, और सामाजिक स्थिरता आती है। इस तरह से देश की विकास गति तेज़ होती है, और विकास का फायदा सबको मिल जाता है – बड़े शहरों से लेकर गांव-देह तक।

समाप्ति में, आत्मनिर्भर भारत कोई फ़ैशन नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक रणनीति है। इसमें हर भारतीय का हाथ है, चाहे वो किसान हो, व्यापारी हो, या साधारण कंज्यूमर। छोटे‑से‑छोटे कदम भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। तो अगली बार जब आप मार्केट में जाएँ, तो ‘स्वदेशी’ को चुनें – यह न सिर्फ़ आपके जेब के लिए, बल्कि पूरे राष्ट्र के भविष्य के लिए फायदेमंद है।

भारत में शुरू हुई टाटा और एयरबस की पहली विमान असेंबली लाइन: आत्मनिर्भर भारत के सपने की उड़ान

29 अक्तूबर 2024 · 0 टिप्पणि

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