हरीयाली तीज का महत्व और इतिहास
हरियाली तीज भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और इसे मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है और इसे 'श्रावणी तीज' भी कहा जाता है। इसका इतिहास पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, जहां यह कहा जाता है कि इस दिन देवी पार्वती ने कठिन तपस्या के बाद भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। इसी कारणवश विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख के लिए व्रत रखती हैं।
व्रत और पूजा विधान
हरीयाली तीज के दिन विवाहित महिलाएं विशेष रूप से सोलह श्रृंगार करती हैं और व्रत का पालन करती हैं। इस व्रत को 'हरतालिका तीज' भी कहा जाता है। महिलाएं सूर्योदय से ही व्रत प्रारंभ करती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। पूजा में बेलपत्र, धतूरा, जल और दुर्वा आदि का विशेष महत्व होता है। पूजा के दौरान महिलाएं शिवजी और पार्वतीजी की कथा सुनती हैं, जो सुखी दांपत्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
मेहंदी और श्रृंगार
हरीयाली तीज के दिन मेहंदी लगाने का विशेष रिवाज होता है। महिलाएं इस अवसर पर विशेष मेहंदी डिजाइन बनवाती हैं, जिसे विवाहिता की खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ ही नई साड़ियाँ, गहने, और श्रृंगार सामग्री पहनना भी इस दिन का मुख्य अंग होता है। महिलाएं एक-दूसरे से मिलकर हर्षोल्लास के साथ इस पर्व का आनंद लेती हैं।
लोक नृत्य और गीत
हरीयाली तीज का त्योहार बिना लोक नृत्य और गीतों के अधूरा समझा जाता है। इस दिन महिलाएं समूह में एकत्रित होकर लोक गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। यह एक सामूहिक उत्सव होता है जो महिलाओं में सामूहिकता और एकता को बढ़ावा देता है। इसमें 'झूला' झूलने का भी रिवाज है, जो सावन के महीने का प्रतीक होता है। यह न सिर्फ मनोरंजन का साधन है बल्कि सामुदायिक जुड़ाव को भी मजबूती प्रदान करता है।
उपहार और शुभकामनाएं
त्योहारों का असली मजा तब आता है जब हम अपने प्रियजनों को उपहार और शुभकामनाएं देते हैं। हरीयाली तीज के अवसर पर महिलाएं एक-दूसरे को उपहार देती हैं जिसमें मिठाइयाँ, कॉस्मेटिक्स, और सांस्कृतिक वस्त्र शामिल होते हैं। इस दिन एक-दूसरे को शुभकामनाएं देने का भी विशेष महत्व है। यहाँ पर हमने कुछ शुभकामना संदेशों का संग्रह किया है जिसे आप अपने प्रियजनों के साथ साझा कर सकते हैं:
- “आपके जीवन में हरियाली तीज खुशियों की हरियाली लाए। शुभ हरियाली तीज!”
- “भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से आपका दांपत्य जीवन सदा सुखी रहे। शुभ हरियाली तीज!”
- “इस हरियाली तीज पर आपकी हर मनोकामना पूरी हो। आपको और आपके परिवार को शुभ हरियाली तीज!”
- “आपका जीवन हरियाली तीज की तरह हरा-भरा और खुशहाल हो। शुभ हरियाली तीज!”
समाज में तीज का प्रभाव
समाज में हरीयाली तीज का बड़ा महत्व है। यह केवल एक धार्मिक त्योहार ही नहीं, बल्कि यह समाज में महिलाओं के संगठित होने और उनके अधिकारों की पुनर्प्रतिष्ठा का भी पर्व है। इस दिन महिलाएं अपने घरों और समाज में अपने महत्वपूर्ण योगदान को भी प्रस्तुत करने का प्रयास करती हैं। इसके माध्यम से हम यह संदेश भी प्राप्त करते हैं कि महिलाओं का कर्तव्य केवल घर-परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि वे समाज की रीढ़ हैं।
इस तरह, हरीयाली तीज का त्योहार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में महिलाओं के योगदान को भी सम्मानित करता है। इस अवसर पर सभी महिलाओं को शुभकामनाएं देना न भूलें और इस त्योहार का आनंद लें।
ये सब बकवास तो बस नकली संस्कृति का नाटक है। असली हिंदू त्योहार तो वो होते हैं जहाँ बच्चे भी पूजा करते हैं, न कि सिर्फ महिलाएं मेहंदी लगाकर झूले में झूल रही हों। ये सब फेसबुक वाली शुभकामनाएं और इंस्टाग्राम वाले साड़ियाँ बस नकली अहंकार हैं।
The ritualistic commodification of feminine devotion under the banner of 'cultural preservation' is, frankly, a postcolonial performance art masquerading as tradition. The bel-patra, the jhoola, the mehndi-all these are aestheticized symbols of a patriarchal contract, repackaged as empowerment. The real tragedy? No one questions whether the vrat was ever truly about devotion, or merely about social surveillance.
मैंने अपने गाँव में तीज मनाया था। बुजुर्ग महिलाएं एक साथ बैठकर गीत गाती थीं, बच्चे उनके आसपास खेल रहे थे। कोई मेहंदी नहीं, कोई साड़ी नहीं, बस एक छोटी सी पूजा और गरम चाय। असली त्योहार वो होता है जहाँ दिल जुड़ता है, न कि फोटो लेने के लिए इंतजार होता है।
इस बार मैंने अपनी बहन के साथ तीज मनाया। उसने खुद बनाई मिठाइयाँ दीं, और हमने शिव-पार्वती की कथा सुनी। न कोई इंस्टाग्राम स्टोरी, न कोई फोटोशूट। बस दो बहनें, एक छोटा सा घर, और शांति। असली खुशी तो इसी में है।
क्या आपने कभी सोचा कि इस त्योहार में पुरुषों का क्या योगदान है या उनकी भूमिका क्या है अगर ये सब महिलाओं के लिए है तो क्या ये समाज में एक अलग अलग धारा बना रहा है क्या ये वाकई एकता है या बस एक अलग नियम का बनावटी ढंग