केरल में ब्रेन-ईटिंग अमीबा का कहर: पांच साल की बच्ची की मौत ने मचाई सनसनी

केरल में ब्रेन-ईटिंग अमीबा का कहर: पांच साल की बच्ची की मौत ने मचाई सनसनी

8 जून 2025 · 0 टिप्पणि

केरल में ब्रेन-ईटिंग अमीबा से मासूम की मौत, क्या है यह बीमारी?

केरल के एक छोटे से गांव में हाल ही में पांच साल की मासूम बेटी की मौत ने पूरे राज्य को हैरान कर दिया है। जिस बीमारी ने बच्ची को अपना शिकार बनाया, उसका नाम इतने लोगों ने सुना भी नहीं होगा—ब्रेन-ईटिंग अमीबा यानी Naegleria fowleri। यह वायरस या किसी आम कीटाणु से अलग है। यह बेहद दुर्लभ, लेकिन उतना ही जानलेवा तरीका है जिससे दिमाग में घुस कर संक्रमण तेजी से फैलता है। बच्ची की मौत सिर्फ कुछ ही दिनों में हो गई, जब परिवार ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया।

इस दुर्लभ बीमारी को मेडिकल भाषा में प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएंसेफेलाइटिस (PAM) कहा जाता है। बच्ची ने सबसे पहले सिरदर्द और बुखार की शिकायत की। उसके बाद उल्टी, झुंझलाहट और फिर मिर्गी के दोरे पड़ने लगे। जब तक डॉक्टरों ने मर्ज पकड़ा, तब तक अमीबा दिमाग के ऊतकों में घुस चुका था। इक्का-दुक्का मामलों में इससे बाहर निकला जा सकता है, लेकिन इलाज बेहद मुश्किल और दौड़-भाग वाला है।

कैसे फैलता है यह संक्रमण, बचाव कैसे करें?

Naegleria fowleri कोई आम अमीबा नहीं है। यह गंदा या गर्म पानी मिलते ही सक्रिय हो उठता है—और खासकर गर्मियों में। नदी, तालाब, गंदे तैराकी के ताल या पानी के पुराने टैंक इसकी पसंदीदा जगहें हैं। जब लोग ऐसे पानी में तैराकी करते हैं या नाक में पानी चला जाता है, तब अमीबा नाक की झिल्ली से होते हुए सीधे दिमाग तक पहुंच जाता है।

बच्ची के परिजनों ने बताया कि वह गांव के पुराने तालाब में नहाई थी, वहां का पानी साफ नहीं था। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस अमीबा से बचाव के लिए सबसे जरूरी है कि गर्म या संदिग्ध पानी में सिर डुबोने या नाक से पानी खींचने से बचना चाहिए। स्विमिंग पूल अगर इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उन्हें समय-समय पर क्लोरीन से साफ़ करवाना अहम है। साफ और बहते हुए पानी से खतरा ना के बराबर रहता है।

सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने इस घटना के बाद आसपास के इलाकों में अलर्ट जारी कर दिया है। गांववालों को बताया गया है कि तालाब, पुराने कुएं या टैंक के पानी में नहाने से बचें। बच्चों पर खास निगरानी रखें, क्योंकि यह संक्रमण कुछ ही दिनों में दिमाग को बुरी तरह नुकसान पहुंचा सकता है।

इलाज के लिए डॉक्टरों ने एंटीफंगल दवाइयां दीं—जैसे एम्फोटेरिसिन बी, मिल्टेफोसिन और रिफैम्पिन। पर बीमारी की रफ्तार इतनी तेज होती है कि ज्यादातर मरीजों को बचाना मुश्किल हो जाता है। अगर शुरुआत में इलाज मिल जाये, साथ में ब्रेन की सूजन कम करने के लिए बॉडी कूलिंग और इमर्जेंसी दवाइयों का इस्तेमाल हो, तो थोड़ी सी उम्मीद बची रह सकती है।

वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की सलाह है—गर्मियों में बच्चों को खुले पानी या बिना रख-रखाव वाले पूल में नहाने से रोकें। अगर नाक में पानी चला जाये और सिरदर्द/बुखार शुरू हो जाए, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। आमतौर पर सिरदर्द बुखार को हल्के में ले लिया जाता है, पर इस तरह के दुर्लभ कीटाणुओं से किसी मासूम की जान जा सकती है।

यह केस बता गया कि जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है। पानी से ज्यादा जरूरी है उसके इस्तेमाल में सतर्कता, क्योंकि कुछ लापरवाही जानलेवा हो सकती है।

रोहित चतुर्वेदी

रोहित चतुर्वेदी

मैं नवदैनिक समाचार पत्र में पत्रकार हूं और मुख्यतः भारत के दैनिक समाचारों पर लेख लिखता हूं। मेरा लेखन सुचिता और प्रामाणिकता के लिए जाना जाता है।

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