केरल में ब्रेन-ईटिंग अमीबा से मासूम की मौत, क्या है यह बीमारी?
केरल के एक छोटे से गांव में हाल ही में पांच साल की मासूम बेटी की मौत ने पूरे राज्य को हैरान कर दिया है। जिस बीमारी ने बच्ची को अपना शिकार बनाया, उसका नाम इतने लोगों ने सुना भी नहीं होगा—ब्रेन-ईटिंग अमीबा यानी Naegleria fowleri। यह वायरस या किसी आम कीटाणु से अलग है। यह बेहद दुर्लभ, लेकिन उतना ही जानलेवा तरीका है जिससे दिमाग में घुस कर संक्रमण तेजी से फैलता है। बच्ची की मौत सिर्फ कुछ ही दिनों में हो गई, जब परिवार ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया।
इस दुर्लभ बीमारी को मेडिकल भाषा में प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएंसेफेलाइटिस (PAM) कहा जाता है। बच्ची ने सबसे पहले सिरदर्द और बुखार की शिकायत की। उसके बाद उल्टी, झुंझलाहट और फिर मिर्गी के दोरे पड़ने लगे। जब तक डॉक्टरों ने मर्ज पकड़ा, तब तक अमीबा दिमाग के ऊतकों में घुस चुका था। इक्का-दुक्का मामलों में इससे बाहर निकला जा सकता है, लेकिन इलाज बेहद मुश्किल और दौड़-भाग वाला है।
कैसे फैलता है यह संक्रमण, बचाव कैसे करें?
Naegleria fowleri कोई आम अमीबा नहीं है। यह गंदा या गर्म पानी मिलते ही सक्रिय हो उठता है—और खासकर गर्मियों में। नदी, तालाब, गंदे तैराकी के ताल या पानी के पुराने टैंक इसकी पसंदीदा जगहें हैं। जब लोग ऐसे पानी में तैराकी करते हैं या नाक में पानी चला जाता है, तब अमीबा नाक की झिल्ली से होते हुए सीधे दिमाग तक पहुंच जाता है।
बच्ची के परिजनों ने बताया कि वह गांव के पुराने तालाब में नहाई थी, वहां का पानी साफ नहीं था। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस अमीबा से बचाव के लिए सबसे जरूरी है कि गर्म या संदिग्ध पानी में सिर डुबोने या नाक से पानी खींचने से बचना चाहिए। स्विमिंग पूल अगर इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उन्हें समय-समय पर क्लोरीन से साफ़ करवाना अहम है। साफ और बहते हुए पानी से खतरा ना के बराबर रहता है।
सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने इस घटना के बाद आसपास के इलाकों में अलर्ट जारी कर दिया है। गांववालों को बताया गया है कि तालाब, पुराने कुएं या टैंक के पानी में नहाने से बचें। बच्चों पर खास निगरानी रखें, क्योंकि यह संक्रमण कुछ ही दिनों में दिमाग को बुरी तरह नुकसान पहुंचा सकता है।
इलाज के लिए डॉक्टरों ने एंटीफंगल दवाइयां दीं—जैसे एम्फोटेरिसिन बी, मिल्टेफोसिन और रिफैम्पिन। पर बीमारी की रफ्तार इतनी तेज होती है कि ज्यादातर मरीजों को बचाना मुश्किल हो जाता है। अगर शुरुआत में इलाज मिल जाये, साथ में ब्रेन की सूजन कम करने के लिए बॉडी कूलिंग और इमर्जेंसी दवाइयों का इस्तेमाल हो, तो थोड़ी सी उम्मीद बची रह सकती है।
वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की सलाह है—गर्मियों में बच्चों को खुले पानी या बिना रख-रखाव वाले पूल में नहाने से रोकें। अगर नाक में पानी चला जाये और सिरदर्द/बुखार शुरू हो जाए, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। आमतौर पर सिरदर्द बुखार को हल्के में ले लिया जाता है, पर इस तरह के दुर्लभ कीटाणुओं से किसी मासूम की जान जा सकती है।
यह केस बता गया कि जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है। पानी से ज्यादा जरूरी है उसके इस्तेमाल में सतर्कता, क्योंकि कुछ लापरवाही जानलेवा हो सकती है।
ये बात सच में डरावनी है। बच्ची की मौत पर दिल टूट गया। गांव के तालाब में नहाना अब बहुत खतरनाक हो गया है।
ये Naegleria fowleri तो बस एक अमीबा है, पर इसकी ताकत देखकर लगता है जैसे कोई बायो-हॉरर फिल्म जीवित हो गई हो। गर्मी में नदियों में डूबने की आदत छोड़ो, बच्चों को बाथरूम में ही नहलाओ। बचाव बिल्कुल सरल है-बस थोड़ी सी सावधानी।
ये सब लोग गंदे पानी में नहाते हैं क्यों? अब तो सरकार ने भी अलर्ट जारी किया है, फिर भी लोग अनजान बने हुए हैं। ये बच्ची की मौत केवल एक ट्रैजेडी नहीं, बल्कि हमारी लापरवाही का परिणाम है। अब तक कोई बात नहीं करता था, अब तो इसे राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर देना चाहिए।
इस पानी के संक्रमण के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में एक टेक्निकल बुलेटिन जारी किया था, जिसमें बताया गया था कि Naegleria fowleri का जीवन चक्र तापमान 35-45°C के बीच अधिकतम होता है, और यह एक नियमित फैक्टर ऑफ एंडोमिक्रोबियल एक्सपोजर है, जिसे एंटीमाइक्रोबियल रिस्पॉन्स के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन हमारी जन जागरूकता अभी भी प्राथमिक स्तर पर है।
बच्ची की मौत से दिल टूट गया। लेकिन अब इसकी बजाय बचाव के बारे में सोचना चाहिए। गांवों में शिक्षा अभी भी कम है। स्वास्थ्य कर्मचारी जाकर बताएं, बच्चों को नहाने के लिए साफ पानी दें। ये बात बहुत बड़ी है।
मैंने अपने बच्चे को तालाब में नहलाने की बजाय घर के पानी से ही नहलाना शुरू कर दिया है। बस एक छोटी सी बात, पर जान बच सकती है। अगर आपके गांव में तालाब गंदा है, तो इसे सरकार के सामने लेकर आएं। ये बात किसी के लिए बड़ी नहीं लगती, पर ये जान बचाती है।
मैंने ये बात अभी तक नहीं सुनी थी लेकिन अब तो मैं बच्चे को नहाने के बाद नाक साफ करने की आदत डाल रहा हूं और गर्मी में तालाब में जाने से बच रहा हूं
ये सब बकवास है! लोग गंदे पानी में नहाते हैं, फिर अमीबा को दोष देते हैं? अगर आप अपने घर के पानी को भी फिल्टर नहीं करते, तो आपकी बेटी की मौत का दोष अमीबा पर नहीं, आपकी अनदेखी पर है! भारत में अभी तक नहाने के लिए टैंक का पानी पीने के लिए नहीं चलता? ये लोग अपने आप को बचाने की कोशिश नहीं करते, बल्कि दुनिया को दोष देते हैं!
ये बच्ची की मौत एक चेतावनी है। लेकिन ये चेतावनी बस एक बच्ची के लिए नहीं, बल्कि हर भारतीय परिवार के लिए है। हमारे गांवों में स्वास्थ्य शिक्षा की कमी है। एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ गांव में जाकर 10 मिनट का वीडियो दिखाए, तो लाखों जानें बच सकती हैं। हमें इस बात को अपनी जिम्मेदारी बनाना होगा।
ये अमीबा केवल एक जीव है, लेकिन इसकी ताकत हमारी अज्ञानता की दीवार को तोड़ देती है। हम आधुनिक दुनिया में रहते हैं, पर अभी भी पानी को अपनी आदतों के साथ जोड़ देते हैं। ये बीमारी हमारे नियमों की नहीं, हमारे सोचने के तरीके की असफलता है। हमें सिर्फ दवाइयों की नहीं, बल्कि सावधानी की आदत की जरूरत है।
मैंने ये सब बातें पहले भी सुनी थी लेकिन किसी ने नहीं सुनी अब तक तो बच्ची मर गई अब सब बोल रहे हैं ये सब बकवास है बस एक बच्ची की मौत के बाद लोग जाग गए
इस अमीबा को भारतीय जनता के अनदेखे जीवन शैली का नतीजा कहना बहुत आसान है लेकिन इसकी असली जड़ तो वो है जो हमारी नीतियों में नहीं बनाई गई ये बच्ची की मौत एक निशान है जो हमारे लोकतंत्र के दिमाग पर खुजला रहा है
हमारे देश में अभी तक नहाने के लिए गंदे पानी का इस्तेमाल हो रहा है? ये नहीं कि अमीबा खतरनाक है, बल्कि हमारी व्यवस्था अपराधी है। जिस तरह से स्वास्थ्य बजट काटा जा रहा है, वैसे ही बच्चों की जानें चली जा रही हैं। ये एक अमीबा नहीं, ये एक सिस्टमिक फेलियर है।
बचाव है। सावधानी है। नहाने से पहले नाक बंद करो।