भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए अपने देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब यूक्रेन पर रूस के हमले और उससे उत्पन्न संघर्ष को लेकर पश्चिमी दुनिया ने रूस के खिलाफ व्यापक प्रतिबंध लगाए हुए हैं। इससे विश्व की राजनीति में एक नई दिशा की ओर संकेत मिलता है और दोनों देशों के बीच के संबंधों को नई ऊंचाई मिल सकती है।
हाल ही में हुई मुलाकातों में यह निर्णय लिया गया कि भारत और रूस आने वाले समय में अपने आर्थिक संबंधों को और मजबूती देंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई इस बैठक में विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हुई, जिसमें ऊर्जा, व्यापार, रक्षा और प्रौद्योगिकी का समावेश था। दोनों नेताओं ने एक दूसरे की आर्थिक और सामरिक स्थिति को मजबूत करने पर जोर दिया।
यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच रूस के लिए यह समझौता एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है। रूस पर लगे प्रतिबंधों के कारण उसकी आर्थिक स्थिति पर भारी दबाव पड़ रहा था, ऐसे में भारत के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने से रूस को काफी लाभ मिल सकता है। इस समझौते से भारत को भी सैन्य उपकरण और ऊर्जा सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग मिलेगा।
यूक्रेन ने इस समझौते की कड़ी आलोचना की है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा को शांति प्रयासों पर एक करारा हमला बताया। ज़ेलेंस्की का मानना है कि रूस के साथ किसी भी प्रकार के व्यापार और सहयोग से यूक्रेन की स्थिति और भी खराब हो सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कदम को भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है। भारत ने पहले भी कई बार स्पष्ट किया है कि वह किसी भी देश के साथ अपने संबंध किसी बाहरी दबाव के तहत नहीं तय करेगा। मोदी सरकार का यह कदम इंगित करता है कि भारत अपने आर्थिक और सामरिक हितों को प्राथमिकता देता है और इसी आधार पर अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को बनाए रखता है।
यह समझौता सिर्फ दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को ही मजबूत नहीं करेगा, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी नए समीकरण उत्पन्न करेगा। भारत और रूस के बीच इस नई भागीदारी से अन्य देश भी अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने को मजबूर हो सकते हैं। वैश्विक व्यापार और सुरक्षा की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है और इसके दूरगामी प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
भारत और रूस के बीच व्यापार पहले से ही एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों ने अपने व्यापारिक संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने के कई प्रयास किए हैं। ऊर्जा, रक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की जरूरत है और इस समझौते से इन सभी क्षेत्रों में नई संभावनाएं खुलेंगी।
समाचार एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को 30 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा, रूस से भारत को तेल और गैस की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए भी कई समझौतों पर काम हो रहा है। भारत के लिए यह समझौता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे उसके ऊर्जा सुरक्षा संबंधी चिंताओं को कम किया जा सकेगा।
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इस बैठक के पश्चात कहा कि दोनों देशों के बीच के संबंध ऐतिहासिक मूल्यों पर आधारित हैं और यह समझौता उन मूल्यों को और मजबूती देगा। उन्होंने विशेष जोर देकर कहा कि रूस भारत को अपना मुख्य सामरिक सहयोगी मानता है और आगे भी इस संबंध को मजबूत करता रहेगा।
अनुभवजन्य तथ्यों से पता चलता है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंध सामरिक और आर्थिक हितों पर आधारित होते हैं। भारत और रूस के बीच का यह व्यापारिक समझौता इस बात का उदाहरण है कि किस तरह दोनों देश अपने अपने हितों को साधने के लिए एक दूसरे का समर्थन कर सकते हैं। यद्यपि वैश्विक राजनीति में इसके अनेक विरोधाभासी प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं, फिर भी यह समझौता एक नए युग की शुरुआत की तरह देखा जा सकता है।
ये सब बातें तो सुनकर दिल भर आता है। हमारी आर्थिक स्वावलंबन की बात हो रही है, और रूस के साथ इतना गहरा साझा अनुभव है कि अब कोई पश्चिमी दबाव हमें रोक नहीं सकता। मैं तो हर बार इस तरह के फैसलों के लिए मोदी जी को तालियां देना चाहती हूं।
ये सब बस धुंधली चादर बिछाने की कोशिश है। यूक्रेन के खिलाफ जो हो रहा है, उसमें भारत का कोई रोल नहीं होना चाहिए। जो भी इसे समझौता कह रहा है, वो अपनी आंखें बंद कर रहा है।
राजनीतिक निर्णयों का मूल्यांकन करते समय आवश्यक है कि हम नैतिक अनुमानों के स्थान पर व्यवहारिक नियमों की ओर ध्यान दें। भारत की विदेश नीति का आधार सदैव राष्ट्रीय हित रहा है, और यह समझौता उसी सिद्धांत का प्रतिबिंब है। वैश्विक व्यवस्था में नैतिक द्वैतवाद का प्रयोग अक्सर असफलता की ओर ले जाता है।
यूक्रेन के लिए ये एक ट्रेचर है। भारत ने अपनी आर्थिक विकास रणनीति के लिए अपने सामरिक नैतिकता को बेच दिया। रूस के साथ तेल की खरीद और अस्त्र-शस्त्र की आपूर्ति एक अंतरराष्ट्रीय अपराध है। ये सब अभी भी ग्लोबल गवर्नेंस के बाहर है। जो इसे समझौता कहता है, वो अपने देश के भविष्य को बेच रहा है।
मैं तो सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि दोनों देशों के बीच ये संबंध पिछले 70 सालों से चले आ रहे हैं। आज का ये समझौता बस उसी राह पर एक नया कदम है। ज्यादा भावुक न हों, बस देखें कि दोनों देश अपने लिए क्या बेहतर समझ रहे हैं।
भाई ये तो ज़िंदगी की सच्चाई है - दोस्ती नहीं, हित होता है राजनीति में। रूस को तेल चाहिए, भारत को तेल और तोपें चाहिए। जो इसे गलत कहता है, वो अपने घर के बिजली के बिल को भूल गया है। हमारी आर्थिक सुरक्षा का नाम लो, तो ज़मीन नहीं बदलती, बस रास्ता बदलता है। और अगर ये रास्ता हमारे लिए सुरक्षित है, तो फिर दूसरों के नारे क्यों सुनें?
मोदी जी की ये यात्रा एक बड़ा धोखा है। यूक्रेन के बच्चे मर रहे हैं, और हम रूस के साथ तेल खरीद रहे हैं? ये नहीं, ये तो देशद्रोह है। जो भी इसे समर्थन दे रहा है, वो अपने देश की आत्मा को बेच रहा है। भारत का नाम गंदा हो रहा है।
यह व्यापारिक समझौता एक निर्माणात्मक रूपांतरण का संकेत है - एक नए बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की नींव, जहां शक्ति केंद्र अब केवल वेस्टर्न अलायंस तक सीमित नहीं हैं। भारत की स्वतंत्र राजनीतिक अभिव्यक्ति, जो ब्रेटन वुड्स के अंतरराष्ट्रीय नियमों के विपरीत है, एक ऐतिहासिक अवसर है जिसे आर्थिक और सामरिक स्वायत्तता के लिए उपयोग किया जाना चाहिए।
हर कोई इसे बड़ा मुद्दा बना रहा है, लेकिन सच तो ये है कि दो देश अपने लोगों के लिए बेहतर बन रहे हैं। तेल की कीमतें कम हो रही हैं, हथियारों की मरम्मत आसान हो रही है, और भारत के लोगों को बेहतर जीवन मिल रहा है। ये बस राष्ट्रीय हित है - न कोई धोखा, न कोई गलती।
इस बात को समझने के लिए बस एक सवाल पूछो - क्या अगर अमेरिका रूस के साथ इतना व्यापार कर रहा होता, तो हम उसे क्या कहते? ये दोहरा मानक है। हम अपने हितों को लेकर स्पष्ट हो रहे हैं, और ये अच्छी बात है। अब बस इतना देखें कि ये समझौता हमारे लिए कैसे फायदेमंद है - न कि दूसरों के राय पर निर्भर हों।