प्रदीप उप्पूर: भारतीय टीवी के आदर्श निर्माता
प्रदीप उप्पूर, जिनका 13 मार्च, 2023 को सिंगापुर में निधन हो गया, भारतीय टेलीविजन और सिनेमा जगत के सबसे प्रमुख निर्माताओं में से एक थे। उनका जन्म 18 जुलाई, 1958 को हुआ था और उन्होंने अपने करियर में कई अहम प्रोजेक्ट्स पर काम किया। उनमें से सबसे प्रसिद्ध है उनका शो सीआईडी, जिसने भारतीय टेलीविजन पर 1998 से 2018 तक राज किया। यह शो एक सांस्कृतिक प्रतीक बन गया, जिसमें एसीपी प्रद्युमन (शिवाजी साटम) और डॉ. सालुंखे (नरेंद्र गुप्ता) जैसे यादगार पात्र थे।
फायरवर्क्स प्रोडक्शन्स के तहत, उप्पूर ने 'सीआईडी' के अलावा 'आहट' और 'सुपरकॉप्स वर्सेस सुपरविलेन' जैसे शो भी बनाए, जो दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय रहे। प्रदीप उप्पूर ने न केवल भारतीय टेलीविजन में बल्कि सिनेमा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
शिवाजी साटम और नरेंद्र गुप्ता की भावपूर्ण श्रद्धांजलि
'सीआईडी' के कलाकार शिवाजी साटम और नरेंद्र गुप्ता ने प्रदीप उप्पूर को याद करते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। साटम ने उन्हें हमेशा मुस्कुराने वाला व्यक्तित्व और ईमानदार स्वभाव वाला बताया। गुप्ता ने उप्पूर के महत्व को अपने करियर में विशेष बताया और कहा कि उनका जाना एक 'अद्भुत व्यक्ति' का खोना है।
प्रदीप उप्पूर ने 'अर्ध सत्य', 'पुरुष', और हालिया फिल्म 'नेल पोलिश' (2021) जैसी फिल्मों का निर्माण कर अपने करिश्मे को स्थापित किया। उनका निधन भारतीय मनोरंजन उद्योग के लिए एक बड़ी क्षति है। उनके प्रशंसकों और साथियों ने उनकी मूर्ति की जिन्दगी और उनके योगदान का सम्मान किया है।
मैंने तो सीआईडी का हर एपिसोड देखा है... अभी भी रात को याद आता है जब एसीपी प्रद्युमन ने वो लास्ट डायलॉग दिया था। उनकी आवाज़ में जो शांति थी, वो आज भी दिल को छू जाती है।
प्रदीप उप्पूर ने टीवी को बस एक बॉक्स नहीं, एक जीवन बना दिया। उनके बिना तो अब हर शो बोरिंग लगता है। मैंने कभी किसी निर्माता को इतना प्यार किया है, जैसे वो मेरे घर का आदमी हो।
उप्पूर का काम बस एक शो बनाना नहीं था, उन्होंने एक सामाजिक विश्वास बनाया। जब तक हम लोग अपने आप को जांचने की आदत नहीं छोड़ेंगे, तब तक सीआईडी जैसे शो जीवित रहेंगे। उन्होंने अपने दर्शकों को सिखाया कि न्याय बस एक शब्द नहीं, एक अभ्यास है।
आज के टीवी पर जो हो रहा है, वो तो बस एक जल्दबाज़ी है-एक फैक्टरी जहां एपिसोड बनाए जा रहे हैं, न कि कहानियां। उप्पूर के ज़माने में हर सीन का एक दिल था।
मैंने एक बार उनके साथ एक इंटरव्यू देखा था, जहां उन्होंने कहा था-‘मैं नहीं चाहता कि लोग मेरा शो देखें, मैं चाहता हूं कि वो अपने आप को ढूंढें।’ ये बात आज भी मेरे दिमाग में घूमती है।
कल एक बच्चे ने मुझसे पूछा-‘अंकल, सीआईडी क्या था?’ मैंने उसे एक एपिसोड दिखाया। उसकी आंखों में वो चमक थी जो हम सबकी उम्र में देखी थी।
अब जब वो नहीं हैं, तो हमें उनकी विरासत को बचाना होगा। न केवल रीरन देकर, बल्कि अपने बच्चों को उनकी कहानियां सुनाकर।
क्या आपने कभी सोचा है कि आज के टीवी ड्रामे में कितने लोग बिना बिना बिना के बोल रहे हैं? उप्पूर के शो में हर शब्द का वजन था।
हम जो आज ‘क्राइम’ कहते हैं, वो उनके समय में ‘मानवता’ की चुनौती थी।
उनके बिना, हमारे टीवी का दिल धड़कना बंद हो गया है।
सीआईडी तो बस एक बोरिंग शो था, जिसमें हर एपिसोड में एक ही तरह का केस था। इतना ध्यान देने लायक क्या था?
उप्पूर का निर्माण शैली वास्तव में भारतीय टेलीविजन के लिए एक नया मानक था। उन्होंने अपने शो में सामाजिक समस्याओं को अत्यंत सूक्ष्मता से चित्रित किया-कोई भी रूढ़िवादी बात नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन की गहराई।
यह उनकी शैली थी जिसने आज के डिजिटल नेटफ्लिक्स शोज को प्रेरित किया।
ये सब भावुकता बकवास है। टीवी शो के निर्माता की मौत पर इतना धमाका? अगर ये आदमी इतना महान था तो उसने क्यों नहीं बनाया कोई वास्तविक इतिहास बदलने वाली फिल्म? बस एक पुलिस शो जिसमें अपराधी हर बार पकड़ा जाता है-ये तो बच्चों के लिए कहानी है।
इस देश में लाखों लोग मर रहे हैं, लेकिन एक टीवी निर्माता की मौत पर ट्रेंड हो रहा है। ये देश क्या बन गया है?
मैंने उनके शो को अपने दादाजी के साथ देखा था। वो हर रविवार को एक कप चाय लेकर बैठ जाते थे। आज भी जब मैं चाय पीता हूं, तो उनकी याद आ जाती है।
प्रदीप उप्पूर के शो में किसी भी चरित्र को नहीं डाला गया था जो एक तरह से अपराधी था या निर्दोष था। हर किरदार के पीछे एक इंसान था। यही उनकी विरासत है।
उनके शो में आज भी वो गलतियां दिखाई जाती हैं जो आज के शो में नहीं दिखतीं-जैसे एक अधिकारी की गलती, या एक पुलिस वाले का डर।
ये शो बस अपराध की कहानी नहीं था, ये इंसान की कहानी थी।
हमें उनकी विरासत को याद रखना चाहिए, न कि बस उनके नाम को ट्रेंड पर लाना।
उनके बाद के निर्माता तो बस टीवी के लिए बना रहे हैं, न कि दर्शक के लिए।
मैंने उनके शो को देखकर सीखा कि न्याय का मतलब बस गिरफ्तारी नहीं है।
उन्होंने हमें दिखाया कि अपराधी के पीछे भी एक दर्द हो सकता है।
आज के टीवी पर जो हो रहा है, वो तो बस एक बाजार का नाटक है।
उप्पूर ने अपने शो को बनाया था दर्शकों के दिल के लिए, न कि रेटिंग के लिए।
हमें उनके बारे में बात करना चाहिए, न कि बस एक ट्रेंड बनाना।
इतनी रोने की बात क्या है? ये तो बस एक टीवी शो बनाने वाला आदमी था। अगर ये इतना महान था तो उसने क्यों नहीं बनाया कोई राष्ट्रीय गर्व की फिल्म? ये सब भावुकता बस एक दिखावा है।
प्रदीप उप्पूर के शो में एक विशेषता थी-वे अपराध को नहीं, बल्कि उसके निर्माण को दिखाते थे। उनकी निर्माण शैली ने भारतीय टीवी को एक नए आधार पर खड़ा किया।
मैं उनके शो को देखकर अपने अध्ययन में भी नए दृष्टिकोण लाया।
उनके बिना ये देश अब बस एक बड़ा टीवी स्टूडियो बन गया है।
मैंने उनके शो को अपने बच्चे के साथ देखा। उसने पहली बार बताया-‘पापा, ये लोग अच्छे हैं न?’ मैंने उसे समझाया कि अच्छाई और बुराई बस एक चुनाव है।
उप्पूर ने बच्चों को न्याय का अर्थ समझाया।
मैंने उनके शो को देखकर सीखा कि एक अच्छा निर्माता वही होता है जो अपने दर्शकों के दिल को छू जाए।
उनके बाद के शो तो बस एक बाजार का ट्रेंड हैं।
हमें उनकी विरासत को याद रखना चाहिए।