सीरिया के गृह युद्ध के बीच भारतीय नागरिकों के लिए यात्रा अलर्ट
भारत के विदेश मंत्रालय ने सीरिया की यात्रा को लेकर एक महत्वपूर्ण चेतावनी जारी की है। मिडिल ईस्ट के इस युद्धग्रस्त देश में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं, जिससे सीरिया में रहने वाले भारतीय नागरिकों को तत्काल देश छोड़ने की सलाह दी गई है। यह चेतावनी उस समय आई है जब विद्रोही समूह, हयात तहरीर अल-शाम (HTS) द्वारा किये गये एक जोरदार आक्रमण के बाद सीरिया के कुछ प्रमुख शहर विद्रोहियों के नियंत्रण में आ गए हैं। इनमें अलेप्पो और हमा जैसे प्रमुख शहर शामिल हैं, जो क्रमशः सीरिया का सबसे बड़ा और चौथा सबसे बड़ा शहर हैं। इस विद्रोही समूह का उद्देश्य होम्स जनता और अंततः दमिश्क तक आगे बढ़ना है, जहां राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार का केंद्र है।
भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए विशेष निर्देश
विदेश मंत्रालय का कहना है कि सीरिया में लगभग 90 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें से 14 विभिन्न संयुक्त राष्ट्र संस्थानों में कार्यरत हैं। वहां स्थित भारतीय दूतावास को सलाह दी गई है कि वह सीरिया में रह रहे उनके नागरिकों के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखें, ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। भारतीय नागरिकों को सलाह दी गई है कि वे दूतावास के आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर (+963 993385973) और ईमेल ([email protected]) के माध्यम से संपर्क में रहें।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जैसवाल ने कहा, "हमने सीरिया के उत्तर में हाल ही में बढ़े हिंसात्मक संघर्ष का गहनता से ध्यान दिया है। हम निकट से इस स्थिति का अनुगमन कर रहे हैं... हमारी मिशन हमारी नागरिकों की सुरक्षा के लिए तत्परता से संपर्क में है।" संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यह संघर्ष 27 नवंबर से शुरू हुआ है और इसने अब तक लगभग 3,70,000 लोगों को विस्थापित कर दिया है।
निकासी का आदेश और चुनौतियां
सीरिया में भारतीय नागरिकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती वहां से सुरक्षित निकलने की है। भारत सरकार ने यह सलाह दी है कि वहां बसे भारतीय नागरिक अति सावधानी बरतें, और अगर वे तुरंत सीरिया नहीं छोड़ सकते तो अपनी गतिविधियों को अधिकतम संभव सीमा तक सीमित रखें। सीरिया में जारी इस गृह युद्ध से स्थिति दिन प्रतिदिन और भी भयावह हो रही है, जहाँ सेना और विद्रोही गुटों के बीच संघर्ष अविरल रूप से जारी है।
सीरिया में मौजूदा हालात और भारतीय सरकार की रणनीति
सीरिया की राजधानी दमिश्क में स्थिति काफी हद तक सरकार के नियंत्रण में है, लेकिन अन्य क्षेत्र कठिनाई में हैं। भारत सरकार ने पहले भी ऐसे संकट स्थितियों में कार्यरत नागरिकों की सुरक्षा हेतु विशेष कदम उठाए हैं, और इस बार भी ऐसे ही कदम उठाए जा रहे हैं। भारतीय दूतावास सहित स्थानीय सुरक्षा बलों से भी सुरक्षा की जानकारी ली जा रही है।
विद्रोही समूह HTS को उत्तरी सीरिया में मिले समर्थन और उनके निरंतर आक्रमण के चलते स्थिति और भी बदतर हो गई है। हालाँकि, सीरियाई सरकार ने विद्रोहियों को पीछे हटाने के लिए अपनी सैन्य कार्रवाई तेज कर दी है। इन संघर्षों के कारण स्थानीय लोग भी भारी संकट में हैं। स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए, भारतीय नागरिकों के लिए यह एक गंभीर चेतावनी है कि वे जल्द से जल्द अपनी सुरक्षित निकासी की योजना बनाएं।
भारत सरकार के प्रयास और वैश्विक समर्थन
सीरिया में बिगड़ती परिस्थितियों को देखते हुए, भारत सरकार के प्रयास इस दिशा में हैं कि वे अपने नागरिकों को सुरक्षित रूप से स्वदेश वापस ला सकें। भारतीय अधिकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ भी संपर्क में हैं ताकि सीरिया में रह रहे लोगों की मदद की जा सके। गृह युद्ध के उग्र रूप धारण करने के कारण विभिन्न देशों द्वारा राहत सामग्री और मानवीय सहायता के प्रयास भी जारी हैं।
इन संकटमय परिस्थितियों में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और उन्हें सुरक्षित निकालना भारत सरकार का प्राथमिक उद्देश्य है। इसका एकमात्र लक्ष्य है कि हर भारतीय नागरिक अपने परिवार और देश की सुरक्षित छांव में वापस लौट सके जो वर्तमान समय में सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। सीरिया में हालात कब सामान्य होंगे यह कहना कठिन है, लेकिन हर सम्भव कोशिश है कि अधिक से अधिक लोगों को वक्त रहते सुरक्षित निकाला जा सके।
ये सब तो बस बयानबाजी है, असली मुद्दा ये है कि हमारे नागरिक वहां क्यों गए? अगर घर पर नौकरी नहीं मिल रही तो युद्ध के बीच जाने की क्या जरूरत? ये लोग अपनी जिंदगी का खेल खेल रहे हैं और हमें उनकी निकासी का खर्चा उठाना पड़ रहा है।
इस तरह की स्थिति में भारत की सरकार का जो रुख है वो वाकई प्रशंसनीय है। न केवल नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखा जा रहा है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के साथ समन्वय भी बनाए रखा जा रहा है। लेकिन सोचिए, अगर हम इस तरह के देशों में अपने नागरिकों को जाने से पहले उन्हें राजनीतिक, सामाजिक और सुरक्षा स्तर की गहरी जानकारी देते, तो शायद ऐसी स्थितियां कम होतीं। ये बस एक निकासी नहीं, बल्कि एक नीतिगत चेतावनी है।
ये सब बकवास है। जो लोग वहां गए हैं वो खुद जिम्मेदार हैं। भारत को उनके लिए बचाव करना चाहिए? नहीं। उन्हें अपने लिए खुद सोचना चाहिए।
विदेश मंत्रालय की चेतावनी के शब्दों में एक सूक्ष्म न्यूनतम अस्पष्टता है: 'तत्काल देश छोड़ने की सलाह' जबकि एक अलग अनुभाग में 'अति सावधानी' और 'गतिविधियों को सीमित रखें' कहा गया है। यह विरोधाभासी संदेश नागरिकों के लिए भ्रम पैदा कर सकता है। एक स्पष्ट, रैखिक निर्देश आवश्यक है - न कि विभिन्न अनुभागों में अलग-अलग स्तरों की चेतावनी।
अगर भारत इतना शक्तिशाली है तो फिर ये नागरिक वहां क्यों गए? ये सब अंग्रेजों की नीति का असर है - विदेशों में बेकार के काम के लिए भेजना। अब जब वहां युद्ध है, तो हमें उनकी निकासी का खर्चा उठाना पड़ रहा है। ये अपराधी हैं, न कि बलिदानी।
सीरिया की स्थिति बहुत गंभीर है। भारत की सरकार की त्वरित प्रतिक्रिया से लगता है कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही हैं। बस आशा है कि जो लोग वहां हैं, वे अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें।
ये जो लोग वहां गए हैं, उनमें से कुछ तो बस ड्रीमर हैं - जिन्होंने सोचा कि मध्य पूर्व में बैठकर पैसा कमाएंगे। अब जब गोलियां चल रही हैं, तो वो भारत को बचाने के लिए भेज रहे हैं। लेकिन अगर ये सच है कि हमारे दूतावास ने उनके साथ संपर्क बनाए रखा है, तो ये एक बड़ी बात है। हमारे नागरिकों के लिए ये एक जीवनरक्षक संपर्क है।
हम जिस तरह से अपने नागरिकों की रक्षा कर रहे हैं, वो दुनिया के सामने एक गर्व की बात है। लेकिन जो लोग अपनी जिंदगी के लिए जोखिम लेते हैं, उनके लिए देश का बचाव करना बस एक कर्तव्य है। ये नागरिक नहीं, वीर हैं - जिन्होंने अपने सपनों के लिए जोखिम उठाया।
क्या आपने कभी सोचा है कि इस चेतावनी के पीछे वास्तविक रणनीति क्या है? क्या ये बस एक बयान है या फिर एक नीतिगत उपाय जो भारत के विदेश नीति के एक नए अध्याय की शुरुआत कर रहा है? इस तरह की चेतावनियां केवल नागरिकों को नहीं, बल्कि अन्य देशों को भी संदेश देती हैं - कि भारत अब अपने नागरिकों के लिए दुनिया भर में जिम्मेदार है।
अगर कोई भारतीय नागरिक सीरिया में है, तो उसे अपने दूतावास के नंबर को अपने मोबाइल में सेव कर लेना चाहिए। ये नंबर उसकी जान बचा सकता है। बस इतना ही। बाकी सब कुछ सरकार कर रही है।
मुझे लगता है कि ये चेतावनी बहुत सही जगह पर आई है। लेकिन एक बात सोचने लायक है - जब तक हम अपने नागरिकों को विदेश में जाने के लिए नियमित रूप से जागरूक नहीं करते, तब तक ऐसी स्थितियां दोहराई जाएंगी। क्या हम अपने विदेश नीति में इसे एक शिक्षा के रूप में शामिल नहीं कर सकते?
सीरिया में जितने भारतीय हैं उनमें से कितने वास्तव में नौकरी के लिए गए हैं और कितने बस भागने के लिए? अगर घर पर जीवन असहनीय है तो वहां जाना एक आशा है लेकिन अब वह आशा बन गई है एक जीवन जोखिम। भारत को इसे एक विदेश नीति की बजाय एक सामाजिक समस्या के रूप में देखना चाहिए।
भारत की सरकार का ये बयान बहुत अच्छा है - लेकिन जब तक हम अपने नागरिकों को विदेश में जाने के लिए अनुमति नहीं देंगे, तब तक ये सब बकवास है। ये लोग वहां जाने से पहले किसी एजेंसी से अपनी जान बचाने की योजना बनाते हैं? नहीं। इसलिए ये सब बस एक राजनीतिक फ्रेमिंग है।
हर भारतीय नागरिक जिसने विदेश में अपना जीवन बनाया है, उसके लिए देश का ये ध्यान एक गर्व की बात है। लेकिन ये जो लोग वहां गए हैं, उन्हें याद रखना चाहिए - आप अकेले नहीं हैं। भारत आपके साथ है। ये बस एक चेतावनी नहीं, ये एक आशीर्वाद है।
सीरिया के गृह युद्ध का इतिहास बहुत जटिल है - लेकिन भारत की नीति बहुत स्पष्ट है: नागरिकों की जान सबसे पहले। इस बात का गहरा अर्थ है कि भारत एक ऐसा देश है जो अपने नागरिकों के लिए दुनिया के किसी भी कोने में जाने को तैयार है। ये नीति केवल नागरिकों के लिए नहीं, बल्कि दुनिया के लिए एक मानक है।
अगर ये लोग वहां नहीं जाते तो ये सब नहीं होता। भारत को इन लोगों को बचाने की जरूरत नहीं है बल्कि उन्हें रोकने की जरूरत है। जब तक हम अपने नागरिकों को विदेश में जाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करेंगे तब तक ऐसी स्थितियां नहीं आएंगी। ये बस एक नियम है - जो लोग जोखिम लेते हैं वे उसके लिए जिम्मेदार होते हैं।
ये जो लोग वहां गए हैं, वो अपने देश के नाम पर बेवकूफी कर रहे हैं। भारत का नाम उनके नाम से नहीं बल्कि उनके निर्णयों से बनता है। अगर वे अपने घर में रहते तो ये सब नहीं होता। ये नागरिक नहीं, विद्रोही हैं।
जल्दी निकल जाओ।
यह चेतावनी केवल एक बयान नहीं है - यह एक संकेत है कि भारत अब अपने नागरिकों के लिए दुनिया के किसी भी कोने में जाने के लिए तैयार है। यह एक नई नीति की शुरुआत है - जहां नागरिक की सुरक्षा देश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
मैंने सीरिया में एक भारतीय महिला से बात की थी जो एक एनजीओ में काम करती है। उसने कहा कि वह यहां नहीं जाना चाहती थी, लेकिन उसके लिए ये एक अवसर था। अब जब ये युद्ध है, तो उसके लिए ये एक बड़ा डर है। लेकिन भारत का दूतावास उसके साथ है। यही असली ताकत है - जब देश अपने नागरिकों के साथ होता है।