वेटिकन में अंतिम विदाई की अनूठी तैयारियाँ
पूरी दुनिया की निगाहें पोप फ्राँसिस के अंतिम संस्कार पर हैं, जो शनिवार, 26 अप्रैल सुबह 10 बजे रोमन समयानुसार ऐतिहासिक सेंट पीटर्स स्क्वायर में आयोजित होगा। वेटिकन ने इस समारोह के लिए तैयारियाँ तेज कर दी हैं। यह अंतिम संस्कार सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि वैश्विक नेताओं और सैकड़ों पत्रकारों की मौजूदगी में एक ऐतिहासिक पल बनने जा रहा है।
वेटिकन के अधिकारीयों के मुताबिक, करीब 130 देशों के प्रतिनिधि इसमें पहुँचेंगे। इनमें 12 शाही परिवार, 55 राष्ट्राध्यक्ष, 14 प्रधानमंत्री और 4,000 से ज्यादा प्रमाणित पत्रकार रहेंगे। सुरक्षा का अभूतपूर्व घेरा तैयार किया गया है, पूरे इलाके की हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है। समारोह का सीधा प्रसारण वेटिकन मीडिया के यूट्यूब और फेसबुक तक होगा, ताकि दुनियाभर के लोग इस पल को देख सकें और अंग्रेज़ी समेत कई भाषाओं में लाइव कमेंट्री भी दी जाएगी।
पोप का सादा ताबूत और नौ दिवसीय शोक
इस विदाई में सबसे अनूठा पहलू है, पोप फ्राँसिस की सादगी की छाप। बुधवार, 23 अप्रैल को देर रात उनका शरीर लकड़ी के सामान्य ताबूत में जिंक लाइनिंग के साथ सेंट पीटर्स बैसिलिका लाया गया। आमतौर पर पोप के ताबूत को एक विशेष ऊँचे मंच पर रखा जाता है, लेकिन फ्राँसिस ने जीवित रहते परंपराओं को बदला, और अब उनका ताबूत भी बैसिलिका के फर्श पर पास्काल मोमबत्ती के करीब ही रखा जाएगा। वे लाल पहनावे में, हाथ में रोजरी के साथ सादगी के प्रतीक बन गए हैं।
कार्डिनल बाल्दासारे रीना ने याद किया कि कैसे पोप ने अपनी पूरी जिंदगी हाशिए पर पड़े लोगों के साथ बिताई। बुधवार की स्मृति प्रार्थना सभा में भी यही भाव झलका, जहाँ गरीबों, शरणार्थियों और समाज के उपेक्षित लोगों के लिए उनका योगदान याद किया गया।
अंतिम यात्रा के बाद, वेटिकन में पारंपरिक ‘नोवेन्दियाली’ यानी नौ दिवसीय शोककाल मनाया जाएगा। इस दौरान दुनियाभर के कार्डिनल रोम पहुँचना शुरू करेंगे। पोप के उत्तराधिकारी के चुनाव के लिए कॉनक्लेव का आयोजन इसी दौरान होगा। माना जाता है कि 15-20 दिनों के भीतर नए पोप का चयन होगा। चुनाव में सीक्रेट बैलेटिंग होती है, और हर राउंड के बाद सिस्टीन चैपल की चिमनी से निकलने वाला काला या सफेद धुआँ बताता है कि चुनाव हुआ या नहीं।
- 130 देशों के प्रतिनिधि शामिल
- 4,000 से अधिक पत्रकार कवरेज में
- ताबूत सादा लकड़ी और जिंक की सूरत में
- पूरे आयोजन का दुनिया भर में लाइव प्रसारण
- शोक के बाद कार्डिनलों की बैठक व उत्तराधिकारी चुनाव
वेटिकन ने पिछले दो दिनों में पोप की ताबूत की तस्वीरें साझा कीं, जिनमें वे अपने पसंदीदा लाल चोगे में रोजरी पकड़े नज़र आते हैं। ताबूत की सादगी और सार्वजनिक विदाई उनके पूरी ज़िंदगी के सरलता और सबको अपनाने की भावना को उजागर करती है। अब पूरा विश्व नई लीडरशिप के इंतज़ार में वेटिकन की हरेक गतिविधि पर नजर रख रहा है।
इस तरह की सादगी आजकल कम ही दिखती है। पोप फ्राँसिस ने बस एक आदमी की तरह जीया, और इसीलिए दुनिया उन्हें याद कर रही है। कोई ज़रूरत नहीं थी उनके लिए सोने के ताबूत की, बस एक लकड़ी का डिब्बा और एक मोमबत्ती काफी थी।
अरे भाई, ये तो बस एक राजनीतिक शो है! दुनिया के 130 देश, 55 राष्ट्रपति, 4000 पत्रकार... ये सब लोग तो अपनी-अपनी तस्वीरें लेने के लिए आए हैं। पोप की सादगी की बात तो ठीक है, लेकिन इस विशाल शो-मिनी-शो के बीच में वो भावना कहाँ गई? उनके लिए जो गरीब लोग आए थे, उनकी तो बस एक तस्वीर बन गई, बाकी कुछ नहीं।
हिंदू धर्म में भी ऐसी ही सादगी है, लेकिन हम अपने गुरुओं को भगवान की तरह पूजते हैं। ये पोप क्या है? एक यूरोपीय बुजुर्ग जिसने अपनी आदतें बदल लीं, और अब दुनिया उसके लिए नाच रही है? हमारे भगवान तो चारों ओर गंगा बहती है, नहीं तो ये लोग तो बस एक ताबूत के आसपास घूम रहे हैं।
यहाँ एक सांस्कृतिक अंतर का गहरा विश्लेषण आवश्यक है: यूरोपीय धर्म के अंतर्गत अंतिम विदाई का आयोजन एक अस्तित्ववादी निर्माण है, जिसमें सादगी एक रूपक है - लेकिन यह रूपक उसी शक्ति के अंतर्गत अभिव्यक्त होता है जिसका उपयोग वही साम्राज्य द्वारा निर्मित विशाल संरचनाओं के विरुद्ध किया जाता है। अतः, यह सादगी एक उपयुक्त नियंत्रण का उपकरण है, न कि एक विरोध। यह अनुभव अपने आप में एक बहुत उच्च स्तर की गैर-प्रत्यक्ष शक्ति का प्रदर्शन है।
इस तरह के विदाई समारोह में सबसे ज़रूरी बात ये है कि लोग एक दूसरे को याद करें, न कि एक पद को। पोप फ्राँसिस ने बस इतना किया - उन्होंने अपनी ज़िंदगी उन लोगों के लिए दी जो किसी के लिए नहीं थे। ये ताबूत, ये मोमबत्ती, ये लाल चोगा... ये सब बस एक इशारा है। बाकी जो हो रहा है, वो तो दुनिया का एक बड़ा गलत फैसला है।